
नई दिल्ली। एक देश एक चुनाव विधेयक (One Country One Election Bill) को लेकर मंगलवार को भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (Former Chief Justice of India.) संजीव खन्ना (Sanjeev Khanna) जेपीसी के सामने पेश हुए। खबर है कि उन्होंने कहा है कि यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। साथ ही उन्होंने चुनाव कराने में चुनाव आयोग की अथॉरिटी (Election Commission, Authority) भी स्वीकार की है, लेकिन आयोग को मिली अनियंत्रित शक्तियों पर सवाल उठाए हैं। इसे लेकर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।
एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि पूर्व सीजेआई खन्ना ने मंगलवार को देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव वाले विधेयक में निर्वाचन आयोग को दिए गए ‘‘अनियंत्रित विवेकाधिकार’’ पर सवाल उठाया और कहा कि चुनावों की आवृत्ति कम करने के प्रस्तावित कानून का उद्देश्य व्यावहारिक रूप से हमेशा पूरा नहीं हो सकता।
भाजपा सांसद पी पी चौधरी की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त समिति के समक्ष पेश हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने सुझाव दिया कि विधेयक में धारा 82ए(5) के तहत प्रावधान के दुरुपयोग के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा उपाय होने चाहिए, जो निर्वाचन आयोग को किसी अप्रत्याशित कारण से तब राज्य विधानसभा चुनाव स्थगित करने की सिफारिश करने की अनुमति देता है जब यह चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ संभव न हो सके।
बैठक के बाद चौधरी ने संवाददाताओं से कहा कि यह सवाल उठाया गया कि क्या यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने कहा, ‘‘यह व्यापक रूप से स्वीकार किया गया कि विधेयक मूल ढांचे के विरुद्ध नहीं है।’’ सूत्रों ने बताया कि खन्ना ने विधेयक के बारे में अपना आकलन ‘‘संतुलित’’ रखा और सदस्यों के प्रश्नों के उत्तर में कई कानूनी बिंदु रखे।
समिति को पूर्व में ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ अवधारणा के रूप में ज्ञात अपने लिखित नोट में उन्होंने कहा था कि किसी प्रस्ताव की संवैधानिक वैधता किसी भी तरह से उसके प्रावधानों की वांछनीयता या आवश्यकता पर घोषणा नहीं है। खन्ना ने कहा था कि संविधान संशोधन विधेयक के बारे में देश के संघीय ढांचे को कमजोर करने से संबंधित तर्क उठाए जा सकते हैं, क्योंकि उन्होंने इस अवधारणा का समर्थन और आलोचना करने वाले विभिन्न दावों को सूचीबद्ध किया था।
उन्होंने कहा कि विधेयक का घोषित उद्देश्य चुनावों की आवृत्ति को कम करना है, लेकिन जब विधानमंडलों को उनके पूर्ण कार्यकाल से पहले ही भंग कर दिया जाए, तो यह हमेशा साकार नहीं हो पाएगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि मध्यावधि चुनाव दुर्लभ हैं, जो बढ़ती राजनीतिक स्थिरता और संस्थागत लचीलेपन का प्रतिबिंब है।
सूत्रों ने बताया कि उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विधेयक के क्रियान्वयन की एक निश्चित तिथि होनी चाहिए, न कि वर्तमान प्रस्ताव के अनुसार, जो इसे संसद में पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित कानून को मंजूरी दिए जाने के बाद नयी लोकसभा की पहली बैठक से जोड़ता है। बैठक में भाजपा के रविशंकर प्रसाद, अनुराग ठाकुर, संजय जायसवाल और संबित पात्रा, कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा, मनीष तिवारी और मुकुल वासनिक, तेदेपा के जीएम हरीश बालयोगी, द्रमुक के पी विल्सन और वाईएसआर कांग्रेस के वाई वी सुब्बा रेड्डी शामिल थे।
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