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एक नदी, दो राज्य, पानी पर मचा ऐसा घमासान, अब केंद्र कराएगा सुलह

March 05, 2025

डेस्क: कृष्णा नदी के जल बंटवारे को लेकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच विवाद गहराता जा रहा है. ये मामला अब केंद्र सरकार तक पहुंच चुका है, जहां दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री अपने-अपने दावों को मजबूती से पेश कर रहे हैं.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने नई दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल से मुलाकात कर कृष्णा नदी के जल का न्यायसंगत आवंटन सुनिश्चित करने की अपील की. रेड्डी ने तर्क दिया कि चूंकि कृष्णा बेसिन का 70% हिस्सा तेलंगाना में है इसलिए राज्य को 70% जल आवंटित किया जाना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने गोदावरी नदी में तेलंगाना की सुनिश्चित जल हिस्सेदारी को अंतिम रूप देने की भी मांग की. साथ ही पलामुरु-रंगारेड्डी, सीताराम और सम्मक्का सागर प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी और वित्तीय सहायता की जरूरत पर भी जोर दिया.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने तेलंगाना के जल संसाधन मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी की ओर से लगाए गए जल शोषण के आरोपों को खारिज कर दिया. नायडू ने स्पष्ट किया कि आंध्र प्रदेश अपने आवंटित हिस्से के अंदर ही कृष्णा नदी के जल का इस्तेमाल कर रहा है और अलग से पानी के उपयोग के आरोप निराधार हैं. हालांकि उन्होंने ये भी स्वीकार किया कि कृष्णा नदी के जल वितरण से संबंधित कुछ मुद्दों का जल्द समाधान जरूरी है.


इस विवाद के बीच बीआरएस के सीनियर नेता और पूर्व जल संसाधन मंत्री टी. हरीश राव ने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर तेलंगाना के जल हितों की रक्षा करने के बजाय राजनीतिक नाटक करने का आरोप लगाया. उन्होंने रेड्डी को चुनौती दी कि वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की ओर से कृष्णा नदी के जल के अवैध मोड़ का खुलकर विरोध करें और तेलंगाना के लिए न्याय सुनिश्चित करें. हरीश राव ने ये भी आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकारों ने तेलंगाना के पलामुरु क्षेत्र की उपेक्षा की जिससे वहां के लोगों को आजीविका के लिए पलायन करना पड़ा.

कृष्णा नदी जल विवाद दशकों से महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जारी है. वर्ष 1969 में ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण’ (KWDT) की स्थापना की गई थी जिसने 1973 में अपनी रिपोर्ट जारी की. इसके बाद 2004 में ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-2’ गठित किया गया जिसने 2010 में अंतिम रिपोर्ट सौंपी. तेलंगाना के गठन के बाद राज्य ने जल आवंटन पर पुनर्विचार की मांग की जिससे विवाद और जटिल हो गया.

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जल बंटवारे को लेकर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की जा रही है ताकि इस विवाद का स्थायी समाधान निकाला जा सके. दोनों राज्यों के हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित जल वितरण की जरूरत महसूस की जा रही है.

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