
भुवनेश्वर । उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने हाल ही में महिलाओं (Women) को मिलने वाली मैटरनिटी लीव (Maternity Leave) को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुबंध पर काम करने वाली महिला कर्मचारियों (Women Employees) को मातृत्व अवकाश और उससे संबंधित लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा है कि महज रोजगार की प्रकृति के आधार पर ऐसे लाभ देने से इनकार करना नारीत्व के प्रति अच्छी भावना नहीं पेश करता है।
कोर्ट में अनिंदिता मिश्रा नाम की एक महिला से जुड़े मामले को लेकर सुनवाई चल रही थी। महिला ने मई 2014 में राज्य सरकार के साथ अनुबंध पर काम करना शुरू किया गया था। अगस्त 2016 में महिला ने एक बच्ची को जन्म देने के बाद छह महीने के मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया। हालांकि सभी जरूरी दस्तावेज जमा करने बावजूद राज्य सरकार ने उसके अनुरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मातृत्व लाभ संविदा कर्मचारियों पर लागू नहीं होता।
हाईकोर्ट में जस्टिस दीक्षित कृष्ण श्रीपाद और जस्टिस मृगांका शेखर साहू की पीठ ने राज्य सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा, “गरीब और कम शिक्षित महिलाएं अपने घर से बाहर निकलती हैं और नौकरी की तलाश करती हैं, चाहे वह सरकारी हो, निजी हो, कॉन्ट्रैक्चुअल हो या कोई और। सरकार सभी को स्थायी नौकरी तो दे नहीं सकती। अगर ऐसा हो पाता तो सबसे अच्छा होता।”
कोर्ट ने आगे भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सम्मान का जिक्र किया। कोर्ट ने कहा, “हमारे यहां ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ कहा जाता है जिसका मतलब है कि जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां देवता प्रसन्न होते हैं। ऐसी आदर्श चीजों को महिलाओं के कल्याण से जुड़ी बातों के लिए प्रेरणा लेनी चाहिए।”
कोर्ट ने एकलपीठ के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा, “चाहे नियुक्ति की प्रकृति कुछ भी हो, सरकार महिलाओं को मातृत्व अवकाश देने से मना नहीं कर सकती।” पीठ ने कहा, “मातृत्व अवकाश इस विचार पर आधारित है कि स्तनपान कराने वाली मां और स्तनपान कराने वाले बच्चे को अलग नहीं किया जा सकता है। स्तनपान कराने वाली मां को अपने बच्चे को स्तनपान कराने का मौलिक अधिकार है।”
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved