
नई दिल्ली । ओडिशा उच्च न्यायालय (Orissa High Court) ने हाल ही में एक निचली अदालत के उस आदेश बरकरार रखा है जिसमें एक पुरुष के DNA परीक्षण की मांग को अस्वीकार कर दिया गया था। सुनवाई के दौरान जस्टिस बी.पी. राउत्रे की एकल पीठ ने कहा कि बच्चे के डीएनए परीक्षण (DNA Testing) का निर्देश देना एक महिला के मातृत्व का अपमान होगा। कोर्ट ने कहा कि यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 में निहित कानून के खिलाफ भी है।
हाईकोर्ट ने शख्स की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह ध्यान में रखना चाहिए कि किसी व्यक्ति को डीएनए परीक्षण के लिए मजबूर करने से उसकी निजता का अधिकार प्रभावित होता है। गौरतलब है कि हाईकोर्ट में उस केस के सिलसिले में सुनवाई हो रही थी जहां संपत्ति के बंटवारे को लेकर एक संयुक्त परिवार के बीच विवाद शुरू हो गया था। विवाद के दौरान प्रतिद्वंदी पक्ष के माता-पिता का पता लगाने के लिए डीएनए परीक्षण की मांग की गई थी।
हालांकि निचली अदालत ने इस मांग को ठुकरा दिया था। जस्टिस राउत्रे ने अपने फैसले में कहा कि यह समझ से परे है कि बंटवारे के मामले में DNA परीक्षण कैसे प्रासंगिक होगा जहां पक्षों की स्थिति को संयुक्त परिवार के सदस्यों के रूप में देखना आवश्यक है जिससे उनके संबंधित हिस्से निर्धारित किए जा सकें।
कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि किसी व्यक्ति को दूसरे का पुत्र मानने के लिए केवल रक्त संबंध की पहचान जरूरी नहीं है बल्कि समाज में उसकी ऐसी पहचान भी महत्वपूर्ण है। एकल पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि प्रतिवादी की उम्र अब 58 वर्ष है इसलिए निचली अदालत ने सही कहा है कि इस उम्र में डीएनए परीक्षण का निर्देश देने से कोई सार्थक परिणाम नहीं प्राप्त होगा।
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