
नई दिल्ली. अमेरिका (America) की तरह ही अब पाकिस्तान (Pakistan) भी बड़े स्तर पर निर्वासितों (Exiles) को देश से बाहर करने जा रहा है. पड़ोसी मुल्क के गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने घोषणा की है कि सभी अफगान नागरिकता कार्ड (ACC) धारकों और अवैध विदेशी नागरिकों को 31 मार्च 2025 तक देश छोड़ना होगा. यह निर्णय सरकार के अवैध विदेशी वापसी कार्यक्रम (IFRP) का हिस्सा है, जो 1 नवंबर 2023 से लागू किया गया था.
गृह मंत्रालय के बयान के अनुसार, जो लोग इस समय सीमा के भीतर स्वेच्छा से वापस नहीं लौटेंगे उन्हें 1 अप्रैल 2025 से जबरन निर्वासित कर दिया जाएगा. पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि निष्कासन की प्रक्रिया गरिमा के साथ पूरी की जाएगी और किसी के साथ भी दुर्व्यवहार नहीं किया जाएगा.
सरकार ने यह भी कहा है कि वापस लौटने वाले लोगों के लिए भोजन और चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था की गई है. मंत्रालय ने सभी विदेशी नागरिकों को कानूनी रूप से रहने की शर्तों को पूरा करने की सलाह दी है.
संयुक्त राष्ट्र (UN) के आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान में 8 लाख से अधिक अफगान नागरिकता कार्ड (ACC) धारक हैं. 13 लाख से अधिक पंजीकृत अफगान शरणार्थी हैं, जिनके पास निवास प्रमाण पत्र (PoR) कार्ड हैं. हालांकि, पाकिस्तान सरकार के बयान में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि PoR कार्ड धारकों पर यह निष्कासन आदेश लागू होगा या नहीं. अब तक, पाकिस्तान से 8 लाख से अधिक अफगान नागरिक पहले ही स्वदेश लौट चुके हैं. पिछले चार दशकों में पाकिस्तान ने लगभग 2.8 करोड़ अफगान शरणार्थियों को शरण दी है.
पाकिस्तान के इस आदेश से अमेरिका और पश्चिमी देशों में पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हजारों अफगान नागरिक भी प्रभावित होंगे. निष्कासन के आदेश का असर उन हजारों अफगान नागरिकों पर भी पड़ेगा, जो 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति से जुड़ा फैसला
यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब पाकिस्तान में अवैध विदेशी नागरिकों की उपस्थिति को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. पाकिस्तान सरकार ने सुरक्षा कारणों, आर्थिक दबाव और राजनीतिक कारणों को इस फैसले का आधार बताया है.
1. आतंकवाद और सीमा पर तनाव
पाकिस्तान लंबे समय से कड़ी आव्रजन नीति का समर्थन करता रहा है, यह दावा करते हुए कि अफगान सीमा से जुड़े आतंकवादी समूहों से देश को खतरा है. अधिकारियों का कहना है कि अवैध रूप से रह रहे लोग आतंकवाद-रोधी अभियानों में बाधा डालते हैं, खासकर तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के खिलाफ. 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर नियंत्रण के बाद, पाकिस्तान ने सीमा सुरक्षा कड़ी कर दी है और इस बड़े पैमाने पर निष्कासन अभियान को अंजाम दिया है.
2. आर्थिक दबाव
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से गुजर रही है. बढ़ती महंगाई, कर्ज और आर्थिक अस्थिरता के बीच सरकार का मानना है कि अवैध प्रवासियों को निष्कासित करने से आर्थिक बोझ कम होगा. अफगान शरणार्थियों की मौजूदगी ने देश के आवास, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार बाजार पर दबाव बढ़ाया है, जिससे स्थानीय समुदायों में आर्थिक असंतोष बढ़ा है.
3. घरेलू राजनीतिक दबाव
अफगान शरणार्थियों को लेकर जनता में नाराजगी बढ़ी है, जिससे सरकार पर कड़े कदम उठाने का दबाव बना. कई राजनीतिक दलों और स्थानीय नेताओं ने अफगान प्रवासियों को अपराध और बेरोजगारी बढ़ाने के लिए जिम्मेदार ठहराया है. इसके अलावा, आगामी चुनावों को देखते हुए यह निर्णय राजनीतिक लाभ उठाने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है.
4. अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंध
तालिबान सरकार के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंधों में तनाव बढ़ गया है. पाकिस्तान ने अफगान तालिबान पर सीमा पार आतंकवाद को रोकने में असफल रहने का आरोप लगाया है. अफगान सरकार ने पाकिस्तान में रह रहे अफगान शरणार्थियों के साथ हो रहे व्यवहार को लेकर चिंता जताई है. यह निष्कासन नीति पाकिस्तान का अफगान तालिबान पर दबाव बनाने का एक तरीका भी हो सकता है.
अब आगे क्या?
मार्च 31 की समय सीमा नजदीक आने के साथ, हजारों अफगान नागरिक अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं. मानवाधिकार संगठनों ने इस निष्कासन नीति की आलोचना करते हुए कहा है कि यह महिलाओं और बच्चों सहित हजारों अफगान शरणार्थियों के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकता है. यह फैसला पूरे क्षेत्र में मानवीय, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी गंभीर प्रभाव डाल सकता है, खासकर तब जब अफगानिस्तान पहले से ही बड़ी संख्या में लौट रहे शरणार्थियों को समायोजित करने में संघर्ष कर रहा है.
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