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संकट में पाक को याद आया भारत

September 02, 2022

– आर.के. सिन्हा

पाकिस्तान में बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ है। पड़ोसी मुल्क का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया है। अब तक बड़ी संख्या में लोगों की जान तक जा चुकी है। स्थिति वास्तव में बहुत गंभीर है। बाढ़ग्रस्त इलाकों में लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि पाकिस्तान ने भारत से आलू, टमाटर,प्याज और खाद्य तेलों का आयात करने की इच्छा जताई है। वहां इन तमाम जरूरी चीजों का संकट पैदा हो गया है। पाकिस्तान के पास कोई विकल्प भी तो नहीं बचा है कि वह भारत से खाने-पीने की जरूरी चीजों का आयात न करे। पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल ने कहा कि सरकार बाढ़ के बाद देश भर में फसल बर्बाद होने के बाद लोगों की सुविधा के लिए भारत से सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ आयात करने पर गंभीरता से विचार कर रही है।

पाकिस्तान ने अगस्त 2019 में औपचारिक रूप से भारत के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को इजराइल के स्तर पर डाउनग्रेड कर दिया था, जिसके साथ इस्लामाबाद का कोई औपचारिक व्यापारिक संबंध नहीं है। पाकिस्तान ने यह निर्णय जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने के भारत के फैसले के विरोध में लिया था। हालांकि, उसने इस तरह का एकतरफा फैसला लेते हुए सोचा नहीं था कि इससे उसे कितना नुकसान होगा। इस बीच, पाकिस्तान में बाढ़ के कारण हुई तबाही पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर संवेदना जताई है। उन्होंने कहा, ”पाकिस्तान में बाढ़ से हुई तबाही को देखकर दुख हुआ। हम पीड़ितों, घायलों और इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित सभी लोगों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं और सामान्य स्थिति की शीघ्र बहाली की आशा करते हैं।” माना जा रहा है कि अगर पाकिस्तान ने औपचारिक तौर पर भारत से मदद मांगी तो भारत पड़ोसी की मदद करने में कभी पीछे नहीं रहेगा। भारत संकटकाल में पड़ोसी या किसी भी अन्य देश की मदद करने से पीछे कभी भी नहीं रहता है।

इस बीच, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सरकार की अपील के बाद वहां पर अंतरराष्ट्रीय सहायता पहुंचने लगी है। दरअसल पाकिस्तान में शाहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह उम्मीद भी थी कि भारत-पाक दोनों के बीच व्यापारिक संबंधों की बहाली हो जाएगी। पाकिस्तान भारत से चीनी तथा कपास का आयात करने को लेकर भी बहुत गंभीर है। यह भी गौरतलब है कि जिस इमरान खान को भारत ने हमेशा सम्मान और आदर दिया उनके समय में भी भारत-पाकिस्तान व्यापार संबंध लगभग बंद ही रहे। उन्होंने तो भारत से रिश्ते न सुधारने की मानो कसम ही खा ली थी। शहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज शरीफ भी जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने भारत के साथ व्यापारिक संबंध सुधारने की हरचंद कोशिशें की थीं। उनकी परिवार की कंपनी के भारत के नामवर उद्योगपति सज्जन जिंदल से कारोबारी संबंध भी थे।

कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि सज्जन जिंदल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 2015 में लाहौर यात्रा की जमीन तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी। उस बेहद चर्चित यात्रा से पहले सज्जन जिंदल इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के मेहमान बनकर जा चुके थे। उनका वहां भव्य स्वागत हुआ था। पर पाकिस्तान के तब के विपक्ष, जिसमें इमरान खान भी शामिल थे, उन्होंने सज्जन जिंदल की यात्रा और उनकी नवाज शरीफ के साथ मीटिंग पर तगड़ा बवाल काटा था। जिसके जवाब में नवाज शरीफ की पुत्री मरियम नवाज शरीफ ने एक ट्वीट करके कहा था-‘सज्जन जिंदल प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के मित्र हैं। उनकी तथा प्रधानमंत्री से मीटिंग में कुछ भी गुप्त नहीं था। विपक्ष बेवजह का हंगामा कर रहा है।’

आजकल प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की भतीजी मरियम नवाज शरीफ ने इमरान खान के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। दरअसल सज्जन जिंदल की कंपनी जिंदल साउथ वेस्ट से शरीफ परिवार की स्टील कंपनी ‘इत्तेफाक’ से कई तरह के प्रोडक्ट खरीदती रही है। यह रिश्ता पारिवारिक संबंधों में तब्दील हो चुका है। हालांकि सज्जन जिंदल की कंपनी तथा इतेफाक में स्टील के उत्पादन तथा लाभ के स्तर पर कोई तुलना नहीं की जा सकती।

दरअसल बाढ़ के कारण भयंकर संकट में फंसे पाकिस्तान को प्रैक्टिकल होना पड़ेगा। वह भारत से दुश्मनी मोल लेकर सिर्फ घाटे में रहेगा। उसे भारत से तिजारती संबंधों को भी गति देनी ही होगी। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) मानता है कि अगर दोनों की सरकारों की तरफ से आपसी व्यापार को गति देने की पहल हो तो 10 अरब रुपये का आपसी कारोबार तो फौरन हो सकता है। पाकिस्तान की रसातल में जाती अर्थव्यवस्था को पंख लगाने की वहां की सरकार को ठोस कोशिश करनी होगी।

फिलहाल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारी संकट में है। पाकिस्तानी रुपया मुद्रा अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमजोर होता जा रहा है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार भी तेजी से खाली हो रहा है। यानी पाकिस्तान के सामने संकट ही संकट है। पाकिस्तान सेना के बड़ी-बड़ी मूंछों वाले जनरलों को समझाना होगा कि भारत के साथ शांति के रास्ते पर चलकर ही पाकिस्तान विकास कर सकेगा। पाकिस्तानी सेना ने अपने देश की प्राथमिकताएं ही बदल दी हैं। उसकी सेना करप्शन में आकंठ डूबी हुई है। उसके दबाव में पाकिस्तान सरकार का रक्षा बजट बढ़ता ही जा रहा है। अब वहां पर जब बाढ़ से तबाही हो रही है, तो उसके हथियारों से पीड़ितों को राहत नहीं मिल रही है।

पाकिस्तान का आधा हिस्सा इस समय विनाशकारी बाढ़ में डूब चुका है। इस बार के बाढ़ को 2010 में आये सुपरफ्लड से बड़ा बताया जा रहा है। पाकिस्तान को धूर्त चीन पर अपनी निर्भरता को भी खत्म करना होगा। वही उसके हित में भी है। चीन इस संकट के समय कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। वैसे भी जो मुल्क दुनिया को कोरोना देगा वह किसी का क्या भला करेगा। कहते हैं, मित्र और पड़ोसी की पहचान संकट में होती है। पाकिस्तान को समझ आ रहा होगा कि इस संकटकाल में भारत उसके साथ खड़ा है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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