
नई दिल्ली । भारत (India)ने जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir)में निर्माणाधीन चार प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं(Hydroelectric projects) की रफ्तार तेज(speed up) कर दी है। इसके अलावा, दो अन्य योजनाओं की डिजाइन को मंजूरी दिए जाने की तैयारी है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत ने अप्रैल में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ 1960 की सिंधु जल संधि को “स्थगित” कर दिया है।
अधिकारियों ने बताया कि जिन परियोजनाओं पर काम तेज किया गया है उनमें 1,000 मेगावॉट की पाकल दुल, 624 मेगावॉट की किरू, 540 मेगावॉट की क्वार और 850 मेगावॉट की रतले परियोजना शामिल है। ये सभी परियोजनाएं चिनाब नदी पर स्थित हैं। अब इनकी अनुमानित पूर्णता तिथियां कुछ महीने पहले कर दी गई हैं और इनका कमीशनिंग क्रमशः मई 2026 से जुलाई 2028 के बीच किया जाना तय है।
रतले परियोजना होगी सबसे पहले पूरी
रतले पनबिजली परियोजना सबसे पहले मई 2026 में पूरी होने की संभावना है। यह जानकारी रतले हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (RHPCL) के एक अधिकारी ने दी। यह कंपनी नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (NHPC) और जम्मू-कश्मीर स्टेट पावर डेवेलपमेंट कॉरपोरेशन (JKSPDC) के संयुक्त उपक्रम के रूप में कार्यरत है।
श्रमिकों की आपूर्ति और समन्वय के लिए बैठकें
पिछले एक महीने में बिजली मंत्रालय, जल संसाधन मंत्रालय, निजी ठेकेदारों और स्थानीय यूटिलिटीज सहित कई एजेंसियों के बीच कई दौर की बैठकें हुई हैं ताकि श्रमिकों की आपूर्ति और निर्माण सामग्री की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
वुलर परियोजना को फिर से गति मिलने के आसार
बिजली मंत्रालय ने वुलर बैराज के नाम से प्रसिद्ध तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट की डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट का भी मूल्यांकन शुरू कर दिया है। यह परियोजना 1987 में पाकिस्तान की आपत्तियों के चलते स्थगित हो गई थी। भारत ने 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए एक घातक आतंकवादी हमले के बाद 1960 के जल समझौते को स्थगित रखने के बाद इन परियोजनाओं से संबंधित जानकारी साझा करना बंद कर दिया है।
अधिकारियों के अनुसार, इसके डिजाइन को जल्दी ही मंजूरी मिल सकती है और निर्माण कार्य 2026 की शुरुआत में शुरू हो सकता है। तुलबुल परियोजना से झेलम नदी के बारामूला से सोपोर तक 20 किलोमीटर लंबे खंड में पूरे साल नौवहन संभव होगा क्योंकि यह जल स्तर को संतुलित बनाए रखने में मदद करेगी। स्थानीय लोगों के मुताबिक, वुलर झील के मुहाने पर स्थित इस परियोजना स्थल पर हाल के हफ्तों में कई बार अधिकारियों ने दौरा किया है।
1980 के दशक में वुलर में 0.34 मिलियन एकड़ फीट पानी रोकने के लिए बनाए जाने वाले बैराज के निर्माण के अवशेषों का इस्तेमाल अब स्थानीय चरवाहों द्वारा आरामगाह के रूप में किया जाता है, जहां से वे झेलम नदी के किनारे खेतों में चरने वाली भेड़ों पर नजर रखते हैं।
अधिकारियों का कहना है कि परियोजना के डिजाइन को मंजूरी मिलने के बाद अगले साल की शुरुआत तक वुलर परियोजना पर काम शुरू हो जाना चाहिए। इससे बारामूला और सोपोर खंडों के बीच नदी की गहराई को एक समान बनाए रखने में मदद करके झेलम के 20 किलोमीटर लंबे हिस्से पर सभी मौसम में नौवहन संभव हो सकेगा।
संधि के प्रावधान और पाकिस्तान की आपत्तियां
सिंधु जल संधि के अनुसार, छह नदियों के जल का 80:20 अनुपात में बंटवारा होता है- पश्चिमी नदियां (इंडस, झेलम और चिनाब) पाकिस्तान को और पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास, सतलुज) भारत को आवंटित हैं। हालांकि भारत, बढ़ती जनसंख्या और ऊर्जा मांग को देखते हुए लंबे समय से इस संधि के नवीनीकरण की मांग कर रहा था।
पाकिस्तान ने विशेष रूप से रतले परियोजना की डिजाइन पर आपत्ति जताई है, जिसे ‘रन ऑफ द रिवर’ योजना के रूप में चिनाब पर किश्तवाड़ जिले में बनाया जा रहा है। पाकिस्तान ने बांध में पानी के भंडारण (पॉन्डेज) और टरबाइन की जल प्रविष्टि क्षमता पर सवाल उठाए हैं।
इस साल जनवरी में हेग स्थित स्थायी पंचाट की तटस्थ विशेषज्ञ समिति को रतले और किशनगंगा परियोजनाओं के डिजाइन संबंधी विवादों पर सुनवाई करनी थी। लेकिन भारत ने तब तक पाकिस्तान के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान बंद कर दिया था।
20,000 मेगावॉट क्षमता का लक्ष्य
अधिकारियों के अनुसार, इन चार परियोजनाओं की कुल उत्पादन क्षमता 3,014 मेगावॉट है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “लंबी अवधि में जम्मू-कश्मीर में लगभग 20,000 मेगावॉट की जलविद्युत क्षमता का लाभ उठाने का लक्ष्य है। नए प्रोजेक्ट्स पर तभी विचार होगा जब ये चार प्रोजेक्ट्स पूरी हो जाएंगी।” भारत ने अप्रैल में स्पष्ट किया था कि सिंधु जल संधि तब तक स्थगित रहेगी जब तक पाकिस्तान “आतंकवाद का समर्थन विश्वसनीय और स्थायी रूप से नहीं छोड़ता।”
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