
नई दिल्ली । मध्यप्रदेश(Madhya Pradesh) उच्च न्यायालय (High Court)ने इंदौर में वाहन चालकों(Vehicle drivers) द्वारा धड़ल्ले से यातायात नियम(यातायात नियम ) तोड़ने पर मंगलवार को नाराजगी जताते हुए कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए उल्लंघनकर्ताओं पर भारी जुर्माना लगाने जैसे कठोर कदमों की दरकार है। जस्टिस विवेक रुसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की पीठ ने ‘राजलक्ष्मी फाउंडेशन’ नाम के सामाजिक संगठन की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका के जरिए शहर की बदहाल यातायात व्यवस्था की ओर अदालत का ध्यान खींचा गया है।
याचिका पर सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी आशीष सिंह, इंदौर नगर निगम के आयुक्त शिवम वर्मा और शहर के पुलिस आयुक्त संतोष कुमार सिंह भी अदालत में मौजूद रहे। सुनवाई के दौरान जस्टिस रुसिया ने कहा कि शहर में यातायात नियमों के पालन को लेकर भी उसी तरह का नागरिक बोध विकसित किया जाना चाहिए, जिस तरह का नागरिक बोध साफ-सफाई को लेकर विकसित किया गया है।
जस्टिस रुसिया ने कहा,‘आपके यहां साफ-सफाई को लेकर नागरिक बोध इसलिए विकसित हुआ क्योंकि पहले आपने (उल्लंघनकर्ताओं पर) भारी जुर्माना लगाया और (इस सिलसिले में) किसी भी अदालत ने दखलंदाजी नहीं की। यही तरीका यातायात व्यवस्था में लागू क्यों नहीं किया जाना चाहिए?’
न्यायमूर्ति रुसिया ने इस मुद्दे पर आगे कहा, ‘आपके यहां अब भी लोग हेलमेट लगाए बगैर एक दोपहिया गाड़ी पर तीन सवारी बैठाकर बिना किसी डर के घूम रहे हैं। वे कहीं भी अपनी गाड़ी खड़ी कर देते हैं। ये समस्याएं तब तक दूर नहीं होंगी, जब तक ऐसे लोगों पर भारी जुर्माना नहीं लगाया जाएगा।’
उच्च न्यायालय ने शहर की यातायात व्यवस्था के मामले में महापौर पुष्यमित्र भार्गव को न्याय मित्र नियुक्त किया है। भार्गव राजनीति में सक्रिय तौर पर शामिल होने से पहले, उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में अतिरिक्त महाधिवक्ता के तौर पर काम कर चुके हैं।
भार्गव ने अदालत को सुझाया कि शहर की यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कठोर कदम उठाए जाने जरूरी हैं और खासकर ई-रिक्शा को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों के अनुरूप स्पष्ट नियम बनाए जाने की दरकार है।
याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बागड़िया ने याचिकाकर्ता ‘राजलक्ष्मी फाउंडेशन’ का पक्ष रखा, जबकि राज्य सरकार और इंदौर नगर निगम की ओर से भुवन गौतम ने पैरवी की। उच्च न्यायालय ने सभी संबद्ध पक्षों के तर्क सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
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