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पायलट प्रोजेक्ट में महू में 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से बाहर हुए

November 17, 2025

  • सुरजने के पत्तों से बने मोरबीटा ने दिखाया कमाल
  • कलेक्टर बोले- इस पहल से पूरे इंदौर में मॉडल लागू करेंगे, अभी और निगरानी की जाएगी

इंदौर, प्रियंका जैन देशपांडे। महू क्षेत्र में कुपोषण के खिलाफ चलाया जा रहा पोषण अभियान एक बड़ा बदलाव लाया है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, माताओं की अभिनव पहल से उपयोग किए गए मोरिंगा (सुरजना) आधारित पोषक पेय ने कुपोषित बच्चों की दशा ही बदल दी है। हर दिन दिए गए इस पेय ने बच्चों के वजन और विकास में उल्लेखनीय सुधार किया है। सिर्फ एक महीने में गंभीर और मध्यम कुपोषण दोनों श्रेणियों में लगभग 50 प्रतिशत बच्चे इस श्रेणी से बाहर आ गए।

कलेक्टर ने इस मॉडल को अत्यंत प्रभावी बताते हुए घोषणा की है कि अब यह फॉर्मूला पूरे इंदौर जिले के सभी कुपोषित बच्चों के लिए लागू किया जाएगा। कहते हैं एक मां अपने बच्चों के लिए यमराज से भी लड़ जाती है, उसके स्वास्थ्य के लिए लाखों जतन करती है। विभाग द्वारा की गई इस पहल और उसके परिणाम पर माताओं ने भरोसा जताया और आज अपने बच्चों के कुपोषण को दूर करने में कामयाब रही हैं। इन माताओं के चेहरे से खुशी हटने का नाम नहीं ले रही। जो बच्चा सुस्त और बीमार नजर आता था, अब वह उनकी नजरों के सामने खेलकूद रहा है। इंदौर महिला एवं बाल विकास विभाग की अभिनव पहल रंग लाई है और अक्टूबर माह से लेकर नवंबर तक बच्चों के स्वास्थ्य में आमूलचूल परिवर्तन देखा गया है। 349 आंगनवाडिय़ों पर की गई पहल ने सैकड़ों माताओं का दर्द खत्म कर दिया है। कलेक्टर शिवम वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि महू क्षेत्र में लागू की गई पहल ने काफी अच्छे परिणाम दिए हैं। यह पूरे शहर की आंगनवाडिय़ों पर चलाई जाएगी।


माताओं की भागीदारी बनी सफलता की कुंजी
अभियान से जुड़ी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि शुरुआत में कई बच्चे पेय नहीं पीना चाहते थे, लेकिन जब माताओं को साथ जोड़ा गया तो बच्चों ने इसे नियमित रूप से लेना शुरू कर दिया। महिलाओं ने घर-घर जाकर माताओं को समझाया, उन्हें मोरिंगा पेय मोरबीटा की जानकारी दी और पोषण परामर्श दिया। परिणामस्वरूप सुधार तेजी से सामने आया। महू के सकारात्मक आंकड़ों को देखते हुए जिला प्रशासन इसे अगले चरण में पूरे जिले में लागू कर सकता है। विभाग ने टारगेट लिया है कि अगले तीन महीनों में पूरे इंदौर के कुपोषित बच्चों को इस मॉडल से जोड़ा जाए और कुपोषण दर में भारी गिरावट लाई जाए।

मोरिंगा मॉडल से कैसे बदला बच्चों का स्वास्थ्य
महिलाओं द्वारा आंगनवाड़ी केंद्रों के साथ मिलकर मोरिंगा पत्तियों, दाल-चावल मिश्रण, गुड़ और सूक्ष्म पोषक तत्वों को मिलाकर बनाए गए पोषक पेय को रोज दूध में मिलाकर कुपोषित बच्चों को पिलाया गया। माताओं को भी इसे घर पर बनाने का प्रशिक्षण दिया गया, जिससे बच्चों का सेवन नियमित हो सका। परिणामस्वरूप बच्चों का वजन बढ़ा, भूख में सुधार हुआ और ऊर्जा स्तर में बढ़ोतरी देखी गई। महिला एवं बाल विकास विभाग अधिकारी रजनीश सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि महू ग्रामीण व महू कैंट क्षेत्र में यह प्रक्रिया पिछले एक महीने से चलाई जा रही थी। मोरबीटा की वजह से 50 प्रतिशत तक क्षेत्र में कुपोषण की दर घटी है। अक्टूबर में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या लगभग 360 थी, जो घटकर 140 पर आ गई है। वहीं मध्यम कुपोषित बच्चों की संख्या 1510 थी, जो आज 800 तक रह गई है।

महू कैंट में बड़ा बदलाव
1 अक्टूबर को महू कैंट क्षेत्र में गंभीर कुपोषित बच्चे 42 व मध्यम कुपोषित बच्चे 241 दर्ज थे। पोषण अभियान और मोरिंगा पेय के नियमित सेवन से 5 नवंबर को यह संख्या घटकर सेम 14 मेम 94 रह गई। इस तरह गंभीर बच्चों में 67 फीसदी और मध्यम गंभीर बच्चों में 61 प्रतिशत सुधार दर्ज किया गया। महू ग्रामीण में भी नतीजे उत्साहजनक सामने आए। महू ग्रामीण क्षेत्र में 1 अक्टूबर को गंभीर कुपोषित बच्चे 114, मध्यम कुपोषित बच्चे 611 थे। 5 नवंबर तक यह संख्या घटकर 71 और 380 रह गई। यानी लगभग 38 फीसदी सुधार देखने को मिला। दोनों क्षेत्रों के संयुक्त परिणाम बताते हैं कि एक महीने में लगभग आधे बच्चे कुपोषण की श्रेणी से बाहर आ गए।

इंदौर को मॉडल बनाएंगे
कलेक्टर ने जानकारी में बताया कि महू में मिला यह परिणाम अत्यंत उत्साहजनक है। उन्होंने कहा कि यह मॉडल सिर्फ महू के लिए नहीं है, बल्कि इसको पूरे इंदौर जिले में लागू किया जाएगा। जितने भी कुपोषित बच्चे हैं, उन सभी तक यह मोरिंगा आधारित पोषण फॉर्मूला पहुंचाया जाएगा। यह देशभर के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है। कलेक्टर ने यह भी निर्देश दिए कि सभी आंगनवाड़ी केंद्र रोजाना मोरिंगा पेय का वितरण सुनिश्चित करें। इस पेय को बनाने के लिए स्वयं सहायता समूहों को बड़े स्तर पर प्रशिक्षण दिया जा सकता है। जिन बच्चों में सुधार हुआ है, उनकी निगरानी जारी रखी जाए।

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