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इस देश के PM ने की इजरायल पर रूस जैसे प्रतिबंध लगाने की मांग

August 18, 2025

तेलअवीव। गाजा में जारी युद्ध (Gaza War) और आम इंसानों की मौत ने दुनिया भर में इजरायल (Israel) के खिलाफ माहौल बना दिया है। हमेशा इजरायल के सपोर्ट में खड़े दिखने वाले यूरोपीय देश भी अब खुलकर पीएम नेतन्याहू (PM Netanyahu) और उनकी नीतियों का विरोध करने लगे हैं। इसी क्रम में अब नया नाम डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन का भी जुड़ गया है। मेटे ने इजरायली प्रधानमंत्री को एक समस्या बताते हुए कहा कि गाजा में बिगड़ते मानवीय संकट के बीच युद्ध समाप्त करने के लिए यूरोपीय संघ को भी इजरायल पर दबाव डालना चाहिए। अगर तब भी हालात नहीं सुधरते तो फिर इजरायल पर भी रूस की तरफ प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए।

डेनमार्क ने कई देशों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता देने को लेकर किए जा रहे विचार पर अपनी सहमति नहीं जताई। पीएम ने कहा कि फिलिस्तीनी राज्य को तत्काल मान्यता देने से संघर्ष कम नहीं होगा। हालांकि उन्होंने कोपेनहेगन के द्वि-राज्य समाधान के समर्थन की पु्ष्टि की। फ्रेडरिक्सन ने लिखा, “फिलिस्तीन को अभी मान्यता देने से उन हजारों बच्चों की मदद नहीं होगी, जो वर्तमान में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह नहीं होगा चाहे आप कितना भी चाह लें। इसके बजाय हमें इजरायल और हमास दोनों पर दबाव बढ़ाने की जरूरत है।

लंबे समय तक इजरायल की मुखर समर्थक रहीं फ्रेडरिक्सन ने नेतन्याहू की नीतियों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने नेतन्याहू पर आरोप लगाया कि उनकी सरकार इजरायल के हितों के विरुद्ध काम कर रही है। नेतन्याहू के बिना इजरायल ज्यादा बेहतर तरीकों से काम करेगा।



उन्होंने गाजा युद्ध में इजरायली सेना द्वारा की जा रही मासूम लोगों की हत्याओं की निंदा करते हुए इसे बेहद भयावह और विनाशकारी बताया। अपना रुख दोहराते हुए फ्रेडरिक्सन ने कहा कि डेनमार्क अभी फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले देशों में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा, “डेनमार्क हमास को इनाम नहीं देना चाहता। हम फिलिस्तीन को मान्यता तभी देंगे जब इसके जरिए फिलिस्तीनी क्षेत्र में वास्तव में हमास से रहित स्थाई लोकतांत्रिक राज्य स्थापित हो और इजरायल भी उसे मान्यता दे।”

आपको बता दें वर्तमान में यूरोपीय संघ की अध्यक्षता डेनमार्क के पास है। कोपेनहेगन की तरफ से बताया गया कि डेनमार्क इजरायल पर भी रूस की तरह ही प्रतिबंध लगाने का विचार कर रहा है। इन प्रतिबंधों का व्यापक और शक्तिशाली प्रभाव होगा। हालांकि अभी किसी भी विचार पर सहमति नहीं बन पाई है और न ही किसी उपाय को खारिज किया गया है।

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