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PM मोदी की SCO समिट में होगी जिनपिंग और शहबाज शरीफ से मुलाकात, चर्चा में उठेंगे ये जरूरी मुद्दे

September 11, 2022

नई दिल्‍ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन (SCO Summit) के लिए अपनी तैयारी पूरी कर ली है. उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) के समरकंद में आयोजित होने वाले इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुख शामिल होंगे. साल 2019 (जून) के बाद से ये पहला फेस-टू-फेस सम्मेलन होगा. 2019 में 13 और 14 जून को किर्गिस्तान के बिश्केक में एससीओ समिट आयोजित की गई थी. सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री के 14 सितंबर को समरकंद पहुंचने और 16 सितंबर को भारत वापस लौटने की संभावना है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, शिखर सम्मेलन में भारत की मौजूदगी बेहद जरूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत समरकंद के इस शिखर सम्मेलन के आखिर में एससीओ की रोटेशनस प्रेसिडेंसी ग्रहण करेगा. सितंबर 2023 तक यानी पूरे एक साल के लिए दिल्ली इस समूह की अध्यक्षता करेगा. यही वजह है कि अगले साल एससीओ शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत करेगा, जिसमें रूस, चीन और पाकिस्तान के नेता शामिल होंगे. एससीओ समिट से इतर भारत की किसी अन्य सदस्य देश से द्विपक्षीय बैठक की भी संभावना है.


पुतिन, जिनपिंग-शहबाज से मिलेंगे PM मोदी
इस शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी के अलावा, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और ईरान के राष्ट्रपति अब्राहिम रायसी शामिल होंगे. हालांकि अभी द्विपक्षीय बैठकों पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. सूत्रों के मुताबिक, सभी सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए एक ही रूम में मौजूद रहने की संभावना है. गौरतलब है कि पीएम मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ आखिरी बार द्विपक्षीय बैठक 2019 (नवंबर) में ब्राजील में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी.

उठेगा यूक्रेन और अफगानिस्तान का मुद्दा!
सूत्रों ने बताया कि पीएम मोदी रूसी राष्ट्रपति पुतिन और ईरानी राष्ट्रपति रायसी के साथ द्विपक्षीय मुलाकात कर सकते हैं. वहीं, पाकिस्तानी पीएम शरीफ की बात करें तो अभी तक पीएम मोदी के साथ उनकी मुलाकात को लेकर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. सूत्रों ने कहा कि इस मीटिंग में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पैदा हुई भू-राजनीतिक स्थिति और इससे दुनिया पर पड़े बुरे प्रभावों पर चर्चा होने की संभावना है. इसके अलावा, तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति पर भी चर्चा हो सकती है. क्योंकि कई एससीओ सदस्य देश अफगानिस्तान के पड़ोसी हैं.

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