
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को पंजीकृत राजनीतिक दलों (Political parties) को कार्यस्थल पर महिलाओं (Women) के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH) के दायरे में लाने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा, “राजनीतिक दलों को POSH अधिनियम के अधीन करने से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा और वे ब्लैकमेल का साधन बन जाएंगे।” इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इससे जुड़ी याचिका खारिज कर दी।
देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों पर ये अधिनियम लागू करने से ‘भानुमती का पिटारा’ खुल जाएगा तथा यह ब्लैकमेल और यह अधिनियम ब्लैकमेल करने का एक साधन बन जाएगा।
महिलाएँ राजनीतिक दलों की सक्रिय सदस्य
याचिकाकर्ता योगमाया जी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने CJI गवई की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि हालाँकि कई महिलाएँ राजनीतिक दलों की सक्रिय सदस्य हैं, लेकिन केवल CPM ने ही बाहरी सदस्यों वाली एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन किया है। इससे राजनीतिक दलों में महिलाओं के पास यौन उत्पीड़न के विरुद्ध कोई उपाय नहीं बचता।
सुनवाई को दौरान CJI गवई ने पूछा, “आप राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर कैसे रखते हैं? यह देखते हुए कि राजनीतिक दल किसी को नौकरी नहीं देते।” इस पर अधिवक्ता गुप्ता ने जोर देकर कहा कि राजनीतिक दल अभी भी एक संगठित व्यवस्था में काम करते हैं। उन्होंने कहा, “उनका एक संगठन होता है।”
राजनीतिक दलों पर भी लागू हो POSH ऐक्ट
उन्होंने मांग की कि इस कानून को पंजीकृत पार्टियों पर भी समान कठोरता से लागू किया जाना चाहिए, जो संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं, जो महिलाओं की गरिमा की रक्षा को अनिवार्य करता है, जिसमें सुरक्षित कार्य वातावरण भी शामिल है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि AAP में ऐसी समिति के बारे में पारदर्शिता का अभाव है, जबकि भाजपा और कांग्रेस ने यह स्वीकार किया है कि उनके यहां ICC की संरचना अपर्याप्त है।
CJI ने कहा, माफ कीजिए…
वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता की दलीलें सुनने के बाद CJI ने कहा, “माफ कीजिए! खारिज!” अदालत ने पूछा, “आप कार्यस्थल में राजनीतिक दलों को कैसे शामिल करती हैं?” उन्होंने कहा कि यह एक संगठन है। इस पर पीठ ने कहा, “जब कोई सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है तो वह कोई नौकरी नहीं होती।” याचिका में केरल हाई कोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि POSH एक्ट 2013 के तहत यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिए राजनीतिक दलों के लिए आंतरिक शिकायत समिति (ICC) गठित करना अनिवार्य नहीं है।
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