
नई दिल्ली। केंद्र सरकार (Central Government) अधिकतम खुदरा मूल्य (Maximum Retail Price- MRP) प्रणाली में बदलाव लाने की योजना बना रही है। इसका उद्देश्य खुदरा वस्तुओं की कीमतों (Retail commodity prices) को अधिक पारदर्शी और उपभोक्ता हितैषी (Making more transparent and consumer friendly) बनाना है। यह प्रस्ताव अभी प्रारंभिक चरण में है और केंद्रीय उपभोक्ता मामलों का विभाग विभिन्न हितधारकों के साथ बातचीत कर रहा है। मामले से जुड़े आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि एमआरपी को लागत और मार्केटिंग खर्च से जोड़ने के लिए तय मानक बनाएं जाए या नहीं। विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ और रोजमर्रा के उपभोग वाले उत्पादों के लिए ये दिशा-निर्देश लागू हो सकते हैं। अधिकारी के मुताबिक, नई व्यवस्था के तहत ‘मानक लागत’ को सभी हितधारकों के परामर्श से तय किया जाएगा। उपभोक्ता मामले विभाग ने हाल ही में इस संबंध में उद्योग संगठनों, उपभोक्ता संगठनों और कर अधिकारियों के साथ बैठक कर संभावित सुझावों पर चर्चा की थी।
कीमतों का भ्रम जाल
फिलहाल, खुदरा विक्रेताओं को उत्पाद की अधिकतम कीमत के रूप में एमआरपी तय करने की छूट है, लेकिन निर्माता कंपनियों को यह स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं होती कि यह एमआरपी किस आधार पर तय की गई है। इस कारण कई बार उपभोक्ताओं को 50% या अधिक की छूट देकर भ्रमित किया जाता है।
बैठक में यह मुद्दा उठा कि जब कोई उत्पाद ₹5,000 की एमआरपी पर बिकने के बजाय ₹2,500 में बेचा जाता है, तो यह सवाल उठता है कि इतना अधिक एमआरपी क्यों लिखा गया था। यदि विक्रेता ₹2,500 में भी लाभ कमा रहा है, तो असली कीमत क्या थी? सरकार इसी असंगत मूल्य निर्धारण को समाप्त करना चाहती है।
तय हो सकता है नया फॉर्मूला
मामले से जुड़े के अनुसार, इस कवायद का मकसद कीमत नियंत्रित करना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि एमआरपी उचित लागत-आधारित मार्जिन पर आधारित हो। एक फॉर्मूला तैयार किया जा सकता है ताकि एमआरपी ऐसी हो, जो उपभोक्ताओं के लिए सस्ती और निर्माताओं के लिए लाभकारी हो। सरकार चाहती है कि एमआरपी को निर्माण लागत और व्यापारिक व्यय से जोड़कर तय किया जाए ताकि छूट के नाम पर गुमराह करने वाली रणनीति पर रोक लगे।
मौजूदा कानून और जीएसटी व्यवस्था
एमआरपी से जुड़े मामलों पर कानूनन मेट्रोलॉजी एक्ट, 2009 के तहत कार्रवाई होती है, लेकिन यह कानून एमआरपी निर्धारण का फॉर्मूला तय करने का अधिकार नहीं देता। इसके अलावा, जीएसटी लागू होने के बाद कराधान प्रणाली बदल गई है। पहले कर एमआरपी पर लगता था, लेकिन अब लेनदेन मूल्य पर पर लगाया जाता है, जिससे एमआरपी निर्धारण में कंपनियों को ज्यादा छूट मिल गई है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि मूल्य निर्धारण को पारदर्शी बनाने के लिए एमआरपी नियंत्रण के बजाय पहले से मौजूद संस्थाओं जैसे प्रतिस्पर्धा आयोग या जीएसटी निगरानी प्रणाली को मजबूत किया जाए। वहीं, उद्योग जगत का मानना है कि एमआरपी पर नियंत्रण से बाजार की स्वायत्तता प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि आवश्यक वस्तुओं जैसे दवाओं को छोड़कर अन्य उत्पादों पर मूल्य नियंत्रण व्यावहारिक नहीं है।
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