
नई दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू(President Draupadi Murmu) ने हाल ही में 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) के द्वारा सुनाए गए उस फैसले पर आपत्ति जताई(Objection raised) है जिसमें देश की सर्वोच्च अदालत(supreme court) के द्वारा राष्ट्रपति और गवर्नर को राज्य की विधानसभाओं द्वारा पास विधेयकों पर कार्रवाई की समयसीमा तय की गई थी। इसके बाद राष्ट्रपति ने 14 सवालों के जरिए सुप्रीम कोर्ट से संविधान की व्याख्या करने का अनुरोध किया है। इस मुद्दे पर करीब एक महीने तक गहन चर्चा हुई। इसमें केंद्र सरकार के विभिन्न विभाग, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और विधि मंत्रालय की विधायी शाखा के बीच विचार-विमर्श हुआ। इसके बाद प्रेसिडेंशियल रेफरेंस तैयार किया गया।
8 अप्रैल को सुनाए गए फैसले की कॉपी 12 अप्रैल को केंद्र सरकार को प्राप्त हुई। इसके बाद यह तय हुआ कि इसका रिव्यू नहीं किया जाएगा, बल्कि राष्ट्रपति के माध्यम से कोर्ट से मार्गदर्शन मांगा जाएगा। इसी के तहत वरिष्ठ कानून अधिकारियों की टीम ने फैसले से उत्पन्न होने वाले कानूनी प्रश्नों की पहचान शुरू की। प्रारंभ में कई सवालों पर विचार हुआ और फिर उन्हें इकट्ठा करते हुए 7 मई को अंतिम मसौदा सरकार को सौंपा गया। इसके बाद यह दस्तावेज राष्ट्रपति सचिवालय को भेजा गया और 14 मई को सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री में दायर किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को फटकार लगाते हुए कहा था कि उन्होंने विधायिका की इच्छाशक्ति को बाधित करने की कोशिश की। अदालत ने राज्यपाल द्वारा 10 दोबारा पारित विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने के उनके फैसले को अवैध करार दिया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर राज्यपाल को कोई विधेयक प्राप्त होता है तो उन्हें एक माह के भीतर उस पर सहमति, असहमति या राष्ट्रपति को भेजना करना होगा। यदि कैबिनेट की सलाह के विरुद्ध कोई कदम उठाया जाता है तो उसे तीन माह में विधानसभा को लौटाया जाना चाहिए। इस फैसले में यह समयसीमा राष्ट्रपति पर भी लागू की गई और कहा गया कि राष्ट्रपति को भी तीन माह के भीतर निर्णय लेना होगा अन्यथा कारण बताने होंगे।
राष्ट्रपति के संदर्भ में पूछे गए 14 प्रश्नों में भारत के संविधान के कई अनुच्छेदों की व्याख्या मांगी गई है। उनमें अनुच्छेद 200 (राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई), अनुच्छेद 201 (राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयक), अनुच्छेद 142 (संपूर्ण न्याय हेतु सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां), अनुच्छेद 361 (राष्ट्रपति और राज्यपालों को न्यायिक कार्रवाई से संरक्षण), अनुच्छेद 145(3) (संविधान पीठ द्वारा महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्नों का निर्णय) और अनुच्छेद 131 (केंद्र और राज्यों के बीच विवादों पर सुप्रीम कोर्ट का मूल क्षेत्राधिकार) शामिल है।
प्रख्यात संवैधानिक विशेषज्ञ राजीव धवन ने इस मामले पर कहा, “यह अब तक का सबसे व्यापक राष्ट्रपति संदर्भ है।” उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करने के लिए पांच जजों की संविधान पीठ गठित करेगा और यह कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इन सवालों का उत्तर दे, अस्वीकार करे, या राष्ट्रपति से सवालों को पुनः तैयार करने को कहे। धवन ने यह भी याद दिलाया कि 1978 के विशेष अदालत अधिनियम और 1993 के राम जन्मभूमि संदर्भ के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने क्रमश: प्रश्नों को पुनः तैयार करने और उत्तर न देने का निर्णय लिया था।
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