
नई दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu)ने सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) के 8 अप्रैल के ऐतिहासिक फैसले(Landmark decisions) पर कड़ी प्रतिक्रिया(Strong reaction) जताई है, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी। राष्ट्रपति ने इस फैसले को संवैधानिक मूल्यों और व्यवस्थाओं के विपरीत बताया और इसे संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण करार दिया। संविधान की अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय से 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। यह प्रावधान बहुत कम उपयोग में आता है, लेकिन केंद्र सरकार और राष्ट्रपति ने इसे इसलिए चुना क्योंकि उन्हें लगता है कि समीक्षा याचिका उसी पीठ के समक्ष जाएगी जिसने मूल निर्णय दिया और सकारात्मक परिणाम की संभावना कम है।
सुप्रीम कोर्ट की जिस पीठ ने फैसला सुनाया था उसमें जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, ‘राज्यपाल को किसी विधेयक पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। इस समय सीमा में या तो स्वीकृति दें या पुनर्विचार हेतु लौटा दें। यदि विधानसभा पुनः विधेयक पारित करती है तो राज्यपाल को एक महीने के भीतर उसकी स्वीकृति देनी होगी। यदि कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा गया हो तो राष्ट्रपति को भी तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।’
राष्ट्रपति ने इस फैसले को संविधान की भावना के प्रतिकूल बताया और कहा कि अनुच्छेद 200 और 201 में ऐसा कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। राष्ट्रपति ने कहा, “संविधान में राष्ट्रपति या राज्यपाल के विवेकाधीन निर्णय के लिए किसी समय-सीमा का उल्लेख नहीं है। यह निर्णय संविधान के संघीय ढांचे, कानूनों की एकरूपता, राष्ट्र की सुरक्षा और शक्तियों के पृथक्करण जैसे बहुआयामी विचारों पर आधारित होते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यदि विधेयक तय समय तक लंबित रहे तो उसे ‘मंजूरी प्राप्त’ माना जाएगा। राष्ट्रपति ने इस अवधारणा को सिरे से खारिज किया और कहा, “मंजूर प्राप्त की अवधारणा संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध है और राष्ट्रपति तथा राज्यपाल की शक्तियों को सीमित करती है।” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब संविधान स्पष्ट रूप से राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर निर्णय लेने का विवेकाधिकार देता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप कैसे कर सकता है।
SC की धारा 142 के उपयोग पर भी सवाल
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट की अनुच्छेद 142 के तहत की गई व्याख्या और शक्तियों के प्रयोग पर भी सवाल उठाए। इसके तहत न्यायालय को पूर्ण न्याय करने का अधिकार मिलता है। राष्ट्रपति ने कहा कि जहां संविधान या कानून में स्पष्ट व्यवस्था मौजूद है वहां धारा 142 का प्रयोग करना संवैधानिक असंतुलन पैदा कर सकता है।
अनुच्छेद 32 का दुरुपयोग?
राष्ट्रपति मुर्मू ने एक और महत्वपूर्ण सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें संघीय मुद्दों पर अनुच्छेद 131 (केंद्र-राज्य विवाद) के बजाय अनुच्छेद 32 (नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा) का उपयोग क्यों कर रही हैं। उन्होंने कहा, “राज्य सरकारें उन मुद्दों पर रिट याचिकाओं के माध्यम से सीधे सुप्रीम कोर्ट आ रही हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 131 के प्रावधानों को कमजोर करता है।”
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