
नई दिल्ली । अब डिग्री कॉलजों (Degree colleges) के प्राचार्य (Principal) पढ़ाने के साथ ही आसपास के क्षेत्र में घूम रहे लावारिस कुत्तों (Stray dogs) की गिनती भी करेंगे। इस अभियान के लिए उत्तराखंड शासन ने प्रत्येक महाविद्यालय के प्राचार्य को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। विश्वविद्यालय स्तर पर यह जिम्मेदारी कुलसचिव को सौंपी गई है। कुत्तों की गणना के बाद इसकी रिपोर्ट स्थानीय प्रशासन को देनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उत्तराखंड में भी सरकारी स्तर पर लावारिस कुत्तों को नियंत्रित करने के उपाय किए जा रहे हैं। इन्हीं उपायों के तहत संयुक्त निदेशक उच्च शिक्षा की ओर से जारी एक आदेश शिक्षाविदों में चर्चा का विषय बन गया है।
दरअसल, बीती 23 दिसंबर को जारी इस आदेश के अनुसार प्रदेश के शासकीय, सहायता प्राप्त अशासकीय और निजी महाविद्यालयों के प्राचार्यों को लावारिस कुत्तों की गणना की जिम्मेदारी दी गई है। आदेश में स्पष्ट लिखा गया है कि प्राचार्य को अपने संस्थान के आसपास लावारिस कुत्तों की गणना कर उनके पुनर्वास के लिए क्या कार्रवाई की गई है या नहीं की गई है, इसकी जानकारी स्थानीय प्रशासन को मुहैया करानी होगी।
शिक्षक जता रहे कड़ी आपत्ति
संयुक्त शिक्षा निदेशक की ओर से जारी इस आदेश पर प्राफेसरों ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है। शिक्षकों का काम बच्चों को शिक्षा और ज्ञान देने का है ताकि बेहतर राष्ट्र, बेहतर नागरिक और बेहतर समाज बन सके। शासन और सरकार को भी चाहिए कि वह शिक्षकों को सम्मान दे लेकिन दुर्भाग्य है कि अब शिक्षक अध्यापन छोड़कर आवारा कुत्तों की गणना करेंगे। यह निर्णय शिक्षक और शिक्षा जगत के लिए अपमानजनक है।
शैक्षिक महासंघ ने जताई कड़ी आपत्ति
मामले में भारतीय शैक्षिक महासंघ के मंडल अध्यक्ष नरेंद्र तोमर का कहना है कि शिक्षक की ड्यूटी कुत्तों की गणना में लगाना और प्राचार्य को नोडल अधिकारी बनाना गरिमा के खिलाफ है। सरकार के इस निर्णय से पूरे शिक्षा जगत का अपमान हुआ है। इसका विरोध किया जाएगा। उधर, उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. एनपी खाली का कहना है कि निदेशालय से ऐसा आदेश जारी किया गया है। आदेश को लेकर प्राचार्यों की ओर से कोई शिकायत नहीं मिली है।

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