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MP के निजी स्कूलों को पैरेंट्स को फीस के बारे में देनी होगी हर जानकारीः सुप्रीम कोर्ट

August 22, 2021

इंदौर। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh ) के स्कूलों में मनमानी फीस वसूली (Arbitrary fee recovery in schools) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बड़ा आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्कूलों को पैरेंट्स को बताना होगा कि कि किस मद में कितनी फीस ले रहे हैं. पैरेंट्स की शिकायतों पर जिला शिक्षा समिति को चार हफ्तों में फैसला करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश जागृत पालक संघ की याचिका पर दिया।


जागृत पालक संघ मध्यप्रदेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैरेंट्स को फीस की जानकारी देने के बाद ये जानकारी स्कूलों से जिला शिक्षा समिति को लेनी होगी. इसके बाद प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग को इस जानकारी को दो हफ्ते में अपनी वेबसाईट पर अपलोड करना होगा. SC ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अगर किसी पालक को स्कूल से कोई शिकायत है तो वह जिला शिक्षा समिति के पास अपनी शिकायत दर्ज करा सकेगा और समिति को चार सप्ताह में इसका निराकरण भी करना होगा. जागृत पालक संघ के सचिन माहेश्वरी, दीपक शर्मा, विशाल प्रेमी, स्व. देव खुबानी, प्रतीक तागड, धीरज हसीजा की तरफ से एडवोकेट अभिनव मल्होत्रा, मयंक क्षीरसागर व चंचल गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की थी।

इस वजह से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
गौरतलब है कि टयुशन फीस के नाम पर स्कूल संचालकों द्वारा पूरी फीस वसूले जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. इस मामले में इंदौर के जागृत पालक संघ के अध्यक्ष एडवोकेट चंचल गुप्ता और सचिव सचिन माहेश्वरी व अन्य सदस्य सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है. पहले पैरेंट्स की शिकायत पर जिला प्रशासन ध्यान ही नहीं देता था. अधिकारी अधिकार क्षेत्र नहीं होने का कहकर मामला टाल देते थे. लेकिन, अब ऐसा नहीं हो सकेगा. 2020 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आदेश दिए थे कि निजी स्कूल केवल टयूशन फीस ले सकेंगे. अधिकांश स्कूल टयुशन फीस की आड़ में पूरी फीस ले रहे थे।

पैरेंट्स को 15 फीसदी ही डिस्काउंट मिले- प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन
बता दें, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई है. इस याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो राहत राजस्थान के स्कूलों को दी है, वही राहत प्रदेश के स्कूलों दे. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के स्कूल संचालकों को कहा था कि निजी स्कूल पूरी फीस में से सिर्फ 15 प्रतिशत की कटौती ही पैरेंट्स को दें, बाकी पूरी फीस पैरेंट्स को देनी होगी।

अधिवक्ता मयंक क्षीरसागर ने निजी स्कूलों की इस मांग पर आपत्ति लेते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय से निवेदन किया कि पिछला सत्र पूरा बीत चुका है और निजी स्कूल एसोसिएशन ने अपनी याचिका में स्वीकार भी किया है कि वो आदेश को स्वीकारते हुए इस अनुसार फीस ले चुके हैं. इसलिए इस समय इस तरह की मांग अनुचित है. सुप्रीम कोर्ट ने उक्त तर्कों से सहमत होते हुए स्कूल एसोसिएशन की याचिका निरस्त कर दी।

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