
उज्जैन। लगभग एक साल से स्कूल व कॉलेज के छात्र ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। कुछ बच्चे लैपटॉप तो कुछ मोबाइल पर प्रतिदिन 3 से 6 घंटे तक स्क्रीन शेयर कर रहे हैं। ऐसे में खासकर छोटे बच्चों में आंखों की समस्या की 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है।
डॉ. निलेश चंदेल ने बताया कि कई बच्चों को नजर के चश्मे लगाने पड़ रहे हैं। जिनके पहले से थे उनके नंबर बढ़ गए है। लगातार स्क्रीन शेयर करने से ड्राई आई, लगातार सीटिंग से पोश्चर बिगडऩा, नेक मसल्स में परेशानी, भेंगापन, लगातार आंखों से पानी आना व मानसिक तनाव जैसी परेशानियां देखी जा रही हैं। कुछ बच्चों में मायोपियो जैसी समस्या भी आ रही है।
पिछले एक साल से बच्चों का खेल-कूद, फिजिकल एक्टिविटी लगभग बंद हो चुकी है। बच्चे स्कूल में जाते थे तो कई तरह की एक्टिविटी करते थे। दोस्तों से मिलते, घूमते-फिरते, स्कूल की सभी गतिविधियों में भाग लेते थे। लेकिन पिछला सीजन पूरी तरह ऑनलाइन गुजरा तो इस साल भी यही हाल दिखाई दे रहा है। इससे बच्चों का मेंटल डेवलपमेंट रुक गया है। बच्चे एक ही कमरे में अकेले बैठे पढ़ते रहते हैं। उनका ध्यान न भटके इसके लिए उनसे कोई संपर्क नहीं करता। ऐसे में बच्चों पर काफी गहरा मानसिक दबाव देखा जा रहा है।
रेडिएशन कर रहा आंखें कमजोर
लगातार घंटों तक आंखों के नजदीक मोबाइल, लैपटॉप या डेस्कटॉप की स्क्रीन रहती है, जिससे स्क्रीन का रेडिएशन सीधा आंखों पर पड़ता है। यह रेडिएशन बच्चों की कोमल आंखों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है। स्क्रीन शेयर करते वक्त बच्चे पलकें नहीं झपकाते हैं, यह भी एक बीमारी का कारण बन रहा है। आमतौर पर एक मिनट में व्यक्ति 16 से 18 बार पलकें झपकाता है, लेकिन स्क्रीन देखते वक्त यह 5 से 8 बार ही करता है, जिससे आंखों में पानी की कमी हो रही है।
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