मॉस्को । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) से वार्ता के दौरान व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने कुछ ऐसी शर्तें रखी हैं, जिन पर उन्होंने पीछे हटने का विकल्प नहीं रखा है। व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) का कहना है कि हम यूक्रेन से जंग रोकने के लिए तैयार हैं, लेकिन इन मांगों को स्वीकार कर लिया जाए। इन पर डोनाल्ड ट्रंप की भी सहमति दिखती है और उन्होंने वोलोदिमीर जेलेंस्की को इसके लिए राजी करने का भी प्रयास किया है। इनमें क्रीमिया, डोनबास जैसे इलाकों को रूस में शामिल करना। इसके अलावा नाटो की मेंबरशिप यूक्रेन को न मिलना शामिल है। इन दोनों मांगों पर तो सहमति दिख रही है, लेकिन तीसरी मांग सबसे ज्यादा खतरनाक है। इसकी चर्चा कम है, लेकिन असर सबसे ज्यादा हो सकता है।
रूसी भाषियों के साथ अत्याचार के नाम पर रूस कभी भी यूक्रेन में दखल दे सकेगा। यह भी उल्लेखनीय है कि 2014 में क्रीमिया के लिए हुई जंग से लेकर अब तक रूसी भाषियों के साथ भेदभाव का आरोप भी अहम रहा है। ऐसी मांग यूक्रेन की संप्रभुता के लिए भी खतरे जैसी है। जब भी रूस को लगेगा कि यूक्रेन में रूसी भाषियों के साथ न्याय नहीं हो रहा है तो वह दखल दे सकता है। बता दें कि 2022 में यूक्रेन पर जब रूस की ओर से हमला किया गया था तो यह भी एक दलील उसमें शामिल थी। इस तरह यूक्रेन रूसी भाषा के नाम पर हमेशा दबाव में रहेगा और उस पर जिम्मेदारी रहेगी कि वह रूस को जंग के लिए ना उकसाए।
यूक्रेन में 30 फीसदी आबादी रूसी भाषियों की
दरअसल रूस उन देशों में रूसी भाषियों के रक्षक के तौर पर खुद को पेश करता रहा है, जो किसी दौर में सोवियत संघ का हिस्सा थे। दिलचस्प तथ्य यह है कि यूक्रेन में 30 फीसदी आबादी रूसी भाषियों की है। 2018 में यूक्रेन के एक हिस्से में रूसी फिल्मों, किताबों और गानों पर पाबंदी लगा दी गई थी। इस पर रूस ने ऐतराज जताया था। इसी तरह अब यदि अमेरिका ने ऐसी मांग स्वीकार कर ली तो फिर रूस कभी भी ऐसे मामले सामने आने पर दखल देने की स्थिति में होगा।
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