
नई दिल्ली. रूस (Russia) के राष्ट्रपति (President) व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) का आज भारत (India) दौरे का दूसरा दिन है। इसी के साथ दोनों देशों के मजबूत रिश्तों को एक नई गति मिलने की संभावना है। व्यापार और सामरिक-कूटनीतिक समझौतों के साथ-साथ दोनों देशों की निगाह एक बार फिर रक्षा समझौतों पर होगी। दरअसल, भारत के रिश्ते रूस से उस समय से स्थापित हैं, जब सोवियत संघ का विघटन तक नहीं हुआ था। भारत उस दौर से ही अपनी रक्षा खरीद के लिए रूस पर निर्भर था। बीते कुछ वर्षों में भारत ने अपनी रक्षा जरूरतों के लिए फ्रांस, इस्राइल और अमेरिका का रुख जरूर किया है, लेकिन अब भी भारत की ज्यादातर रक्षा आपूर्ति रूस से ही होती है।
इस पूरी स्थिति के बीच यह जानना अहम है कि आखिर भारत और रूस के रक्षा मामलों से जुड़े रिश्ते कितने गहरे हैं? पुतिन के भारत दौरे से मोदी सरकार इस बार रक्षा क्षेत्र के लिए क्या उम्मीदें लगा रही है? दोनों देश किन-किन रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं? किन खास हथियारों को लेकर भारत की ओर से दिलचस्पी दिखाई गई है और इनकी खासियत क्या है? आइये जानते हैं…
1. भारत-रूस के रक्षा रिश्तों का इतिहास क्या?
रूस पर भारत की इस निर्भरता का कारण 20वीं और 21वीं सदी की शुरुआत में रूस से खरीदे गए हथियार रहे हैं। इस समय में लड़ाकू विमानों से लेकर बंदूकों और नौसैनिक पोतों से लेकर मिसाइलों तक के मामले में रूस भारत का सबसे बड़ा साझेदार रहा। इसके बाद एस-400 डिफेंस सिस्टम और एके-203 असॉल्ट राइफल के समझौते ने भी दोनों देशों के सहयोग को बढ़ाया है। यानी कुल मिलाकर भारत और रूस रक्षा के मामले में बंधे हैं।
2. किन समझौतों से मजबूत हो रहे रिश्ते
दोनों देश ने अपने रक्षा संबंधों को बढ़ाने के लिए 2021 से 2031 की अवधि के लिए सैन्य तकनीकी सहयोग कार्यक्रम से जुड़े समझौते को भी बढ़ाया है। इस कार्यक्रम के तहत दोनों देश अनुसंधान-विकास, उत्पादन, रख-रखाव, हथियार प्रणालियों और सैन्य उपकरणों के तकनीकी सहयोग को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्धता जता चुके हैं।
भारत और रूस के बीच रक्षा व सैन्य तकनीकी मामलों की समीक्षा हेतु एक संस्थागत व्यवस्था मौजूद है। 2021 में शुरू हुआ 2+2 इससे जुड़ा एक उच्चस्तरीय मंच है, जहां दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्री संयुक्त रूप से अपने संबंधों की समीक्षा करते हैं। इससे जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण निकाय भारत-रूस अंतर-सरकारी सैन्य तकनीकी सहयोग आयोग (IRIGC-MTC) है, जिसकी स्थापना 2000 में हुई। दोनों देशों के रक्षा मंत्री हर वर्ष बारी-बारी से मिलकर प्रगति की समीक्षा करते हैं। इसके तहत दो वर्किंग ग्रुप और नौ सब-ग्रुप विभिन्न तकनीकी व सैन्य मुद्दों पर कार्य करते हैं।
3. मौजूदा समय में कौन सी रक्षा परियोजनाओं से जुड़े भारत-रूस
दोनों देशों के बीच फिलहाल टी-90 टैंकों और सुखोई-30एमकेआई विमानों का लाइसेंस उत्पादन, कामोव हेलीकॉप्टर (Ka-31) की आपूर्ति शामिल है। यह सहयोग अब पारंपरिक खरीदार-विक्रेता रिश्तों से आगे बढ़कर संयुक्त तौर पर डिजाइनिंग, अनुसंधान और उत्पादन मॉडल पर विकसित हो चुका है।
दोनों देश संयुक्त उत्पादन के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ा रहे हैं। ब्राह्मोस मिसाइल इसका सबसे अहम उदाहरण है। इसके अलावा एके-203 राइफलों के उत्पादन के लिए संयुक्त उद्यम की स्थापना हुई है और उत्पादन मेक इन इंडिया पहल के तहत चल रहा है।
4. दोनों देशों की सेनाएं भी संयुक्त अभियान में शामिल
इतना ही नहीं दोनों देशों की सेनाएं भी करीबी सहयोग में शामिल हैं। सेनाओं के तीनों अंगों के संयुक्त सैन्य अभ्यास इंद्र (INDRA) नाम से आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा दोनों देश अंतरराष्ट्रीय सैन्य खेलों और वोस्तोक अभ्यास का भी हिस्सा रहे हैं।
अब जानें- पुतिन के दौरे में किन रक्षा समझौतों के लिए भारत की तैयारी?
भारत बीते कई वर्षों से रूस के एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस प्रणाली ने पाकिस्तान के सभी हमलों को न सिर्फ नाकाम किया, बल्कि उसे बड़ा नुकसान भी पहुंचाया। दूसरी तरफ भारत की नजर इस बार पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान Su-57 पर भी रहेगी, जो कि न सिर्फ अमेरिका के एफ-35 लड़ाकू विमान के मुकाबले में है बल्कि चीन के पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स का भी जवाब हो सकता है। भारत अपने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) प्रोजेक्ट के पूरा होने तक रूस से सुखोई-57 खरीद कर अपनी जरूरतें पूरी कर सकता है।
1. एस-400 डिफेंस सिस्टम
भारत पहले ही रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम खरीद चुका है। हालांकि, अब तक देश के पास सीमित एस-400 सिस्टम हैं और वह कम से कम पांच रेजिमेंट एस-400 और खरीदने की तैयारी में है, जिसे भारतीय सेना पाकिस्तान और चीन से लगती सीमा के करीब अपने रक्षा ढांचों की सुरक्षा के लिए तैनात कर सकती है। इसके अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों में भी एस-400 का सुरक्षा ढांचा मुहैया कराया जा सकता है।
एस-400 वायु रक्षा प्रणाली उपकरणों का एक नेटवर्क है, जिसे हवाई खतरों से निपटने के लिए किसी विशिष्ट क्षेत्र में तैनात किया जाता है। यह दुश्मन के लड़ाकू विमानों, मिसाइलों और ड्रोन्स को हवा में ही निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भारतीय वायुसेना के सबसे ताकतवर हथियारों में से एक माना जाता है। यह किसी भी संभावित खतरे को हवा में ही तबाह करने में सक्षम है। एस-400 मिसाइल सिस्टम को चीन और पाकिस्तान के खतरे को ध्यान में रखकर तैनात किया गया है। इसकी रेंज 40 से 400 किलोमीटर के बीच है। भारत और रूस के बीच साल 2018 में एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का सौदा हुआ था। सौदे के तहत भारत को एस-400 मिसाइल सिस्टम की तीन रेजीमेंट मिल चुकी हैं। भारत को अभी दो और रेजीमेंट मिलनी हैं, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से उनमें देरी हुई है और अब उनके साल 2026 में मिलने की उम्मीद है।
S400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के एक रेजीमेंट में आठ लॉन्चर होते हैं। मतलब आठ लॉन्चिंग ट्रक और हर एक ट्रक में चार लॉन्चर होते हैं। हर लॉन्चर से चार मिसाइलें निकलती हैं। मतलब एक रेजीमेंट कभी भी 32 मिसाइलें दाग सकता है। यह आसमान से घात लगाकर आने वाली किसी भी मिसाइल को पलक झपकते ही बर्बाद करने की क्षमता रखता है। यह दुनिया की सबसे सटीक एयर डिफेंस सिस्टम में से एक है। खास बात ये है कि किसी भी क्षेत्र से आने वाले न्यूक्लियर मिसाइल को भी ये हवा में ही नष्ट करने की क्षमता रखता है। इसके जरिए दुश्मनों की सीमा के अंदर भी नजर रखी जा सकती है।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved