
नई दिल्ली । लोकसभा नेता विपक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली (Arun Jaitley) को लेकर किए गए दावों ने राजनीति को तेज कर दिया है। भाजपा नेताओं (BJP Leaders) और रोहन जेटली (Rohan Jaitley) द्वारा राहुल गांधी के दावों की टाइम लाइन पर उठाए गए सवालों पर कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने जवाब दिया है। इतना ही नहीं उन्होंने राहुल के दावों के समर्थन में सबूत भी पेश किए हैं। भाजपा नेताओं पर उछलकर कांग्रेस का ही प्रचार करने का आरोप लगाने वाले खेड़ा ने इन सबूतों में सावरकर को भी लपेट लिया है।
सोशल मीडिया साइट एक्स पर पोस्ट करते हुए पवन खेड़ा ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने लिखा, “कांग्रेस ने, राहुल गांधी के नेतृत्व में, इन किसान-विरोधी क़ानूनों का पुरज़ोर विरोध किया। इसी संदर्भ में दिवंगत अरुण जेटली राहुल गांधी से मिलने 10 जनपथ आए और अपने साथ एक धमकी भी लेकर आए। परंतु वे यह भूल गए कि राहुल जी गांधी हैं, सावरकर नहीं। हालांकि मूल बात यह नहीं है कि धमकी किसने दी थी बल्कि यह ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि यह धमकी किसके कहने पर दी गई। इसके पीछे, जो हाथ था वह मोदी और शाह की जोड़ी का था। यह कभी भी किसी एक विधेयक या क़ानून की बात नहीं थी। यह राहुल गांधी के भारत के किसानों और आम जनता के लिए दृढ़, अडिग और साहसी संघर्ष को कुचलने की साज़िश थी।”
2020 के पहले से शुरू है बीजेपी की किसान विरोधी नीति: खेड़ा
इससे पहले खेड़ा ने मोदी सरकार पर शुरुआत से ही किसान विरोधी होने का आरोप लगाया। उन्होंने लिखा, “साल 2020 के कृषि क़ानून बीजेपी सरकार की किसान-विरोधी नीतियों की शुरुआत नहीं थे, बल्कि वे उस लम्बे, योजनाबद्ध और किसान-विरोधी एजेंडे की पराकाष्ठा थे, जिसे बीजेपी सरकार ने अपनी विनाशकारी नीतियों की प्रयोगशाला में वर्षों से तैयार किया था।पहला आघात तो दिसंबर 2014 में ही हुआ जब मोदी सरकार ने 2013 के भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास विधेयक को कमज़ोर करने का प्रयास किया। इसके बाद 2017 में आया तथाकथित मॉडल कृषि उपज एवं पशुधन विपणन अधिनियम जो किसानों के अधिकारों पर एक और छिपा हुआ प्रहार था।”
मुलाकातों का पूरा लेखा-जोखा: पवन खेड़ा
इससे पहले मीडिया से बात करते हुए खेड़ा ने राहुल गांधी के दावों का समर्थन करते हुए अरुण जेटली के सुपुत्र रोहन जेटली और भाजपा के टाइम लाइन वाले सवालों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा, “कब, कौन, किससे मिलता है, इसका पूरा लेखा-जोखा रहता है। यह सभी तारीखें सभी के पास रहती हैं। क्या जब एपीएमसी संशोधन लाया जा रहा था तब अरुण जेटली वहां नहीं थे? या जब भूमि अधिग्रहण की बात आ रही थी तब अरुण जेटली जी यहां नहीं थे? वह सबसे आगे थे। मैं आपको वह समाचार भी दिखाऊँगा, जब नवंबर 2015, जनवरी 2018, 22 जनवरी 2018 को इन दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी। यह तारीखें सभी के पास हैं।”
आपको बता दें यह पूरा घटनाक्रम तब शुरू हुआ, जब राहुल गांधी ने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( भाजपा-आरएसएस) डराने की राजनीति में विश्वास करते हैं और इसी का परिणाम है कि कृषि कानून के विरोध के दौरान उनकी आवाज दबाने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने उन्हें धमकाया था। उन्होने कहा कहा कि जब वह कृषि कानूनों को लेकर सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे थे तो तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जेटली ने उन्हें धमकाया कि यदि विरोध नहीं छोड़ोगे तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
राहुल के इस बयान के बाद अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली ने उन पर निशाना साधते हुए कहा था कि तीनों कृषि कानून 2020 में आए थे, जबकि उनके पिता का निधन 2019 में ही हो गया था।
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