
नई दिल्ली । सिख इतिहास(Sikh history) की जानकारी रखने वाले सरदार तरलोचन सिंह(Sardar Tarlochan Singh) का कहना है कि जिस रायसीना हिल(Raisina Hill) पर राष्ट्रपति भवन(President’s House) है, वह जमीन गुरुद्वारा रकाबगंज से जुड़ी हुई है। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली को बनाने में सिखों का बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि यह पढ़ने और जानने की जरूरत है कि दिल्ली आखिर बनी कैसे। सरदार तरलोचन सिंह ने कहा, ‘ये जो संसद भवन के बाहर गुरुद्वारा रकाबगंज है, उसी की जमीन है, जो आसपास में है। रायसीना हिल का मालिक गुरुद्वारा है और वह जमीन भी सिखों की है। उसे बनाने वाले भी सिख ही हैं।’
अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरपर्सन तरलोचन सिंह ने कहा कि किसी भारतीय किताब में महाराजा रणजीत सिंह पर कोई चैप्टर नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारा यही मलाल है कि किसी किताब में यह नहीं बताया जाता कि महाराजा रणजीत सिंह कौन थे। यह ठीक नहीं है और उनके बारे में देश के लोगों को जानकारी मिलनी चाहिए थी। उन्होंने खालिस्तानी अलगाववाद पर भी बात की और कहा कि कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में जो सिख डायस्पोरा है, वहां से ऐसी मांग उठती हैं कि सिख रेफरेंडम होगा। सोचने वाली बात है कि हमारा फैसला तो हम ही ले सकते हैं।
आखिर बाहर बसे लोग कैसे ले सकते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि कनाडा में रेफरेंडम से कुछ नहीं होगा। वे जिस रेफरेंडम की बात कर रहे हैं, वह तो यहां होना है और यहां पर उनकी कोई मौजूदगी ही नहीं है।
यही नहीं उन्होंने सिख अलगाववादियों को भी नसीहत दी और कहा कि यदि वास्तव में बाहर बसे ऐसे लोग पंजाब के लिए कुछ करना चाहते हैं तो यहां निवेश करें। शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग में योगदान दें। इससे पंजाब को तरक्की मिलेगी। यही नहीं इस दौरान उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह की ओर से सेकुलरिज्म की नीति का भी जिक्र किया।
तरलोचन सिंह ने कहा कि अमृतसर में जितना सोना लगा है, उतना ही सोना लाहौर की सुनहरी मस्जिद में लगा है। इसके अलावा इतना ही सोना काशी विश्वनाथ मंदिर में लगा है। यह दान महाराजा रणजीत सिंह ने दिया था, जो महान सिख शासक थे और पंजाबी सूबे की सीमाएं जिनके दौर में सबसे बड़ी थीं।
उन्होंने कहा कि यही सच्चा सेकुलरिज्म है, जो महाराजा रणजीत सिंह का था। उन्होंने कोहिनूर हीरा पुरी के जगन्नाथ मंदिर को दान कर दिया था। किसी भारतीय किताब में महाराजा रणजीत सिंह पर कोई चैप्टर नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारा यही मलाल है कि किसी किताब में यह नहीं बताया जाता कि महाराजा रणजीत सिंह कौन थे।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved