
नई दिल्ली । मां की ममता कितनी कोमल और निर्मल होती है, इसका ताजा उदाहरण मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)में सामने आया है। एक नाबालिग रेप पीड़िता(Minor rape victim) अपने होने वाले जिस बच्चे का अबॉर्शन (abortion of a child)कराने की इजाजत मांगने कोर्ट (court seeking permission)गई थी, अब उसके जन्म लेने के बाद उसकी ममता जाग उठी। उसने कोर्ट में एक आवेदन देकर उस बच्चे को खुद पालने की इच्छा जताई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश की एक नाबालिग रेप पीड़िता ने अपने 32 सप्ताह और 6 दिन के गर्भ को गिराने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर किया था। कोर्ट ने उसकी याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे अबॉर्शन की इजाजत दे दी थी, लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि यदि बच्चा जीवित पैदा होता है तो राज्य सरकार बच्चे की जिम्मेदारी लेने होगी।
संयोग से नाबालिग रेप पीड़िता ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म के बाद उसकी ममता जाग उठी और उसने बच्चे की कस्टडी लेने के लिए एक बार फिर कोर्ट में आवेदन किया। उसके आवेदन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि नवजात शिशु की कस्टडी उसकी मां को दी जाए, जो अपने माता-पिता की देखरेख में उसका पालन-पोषण करेगी। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की एकल पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि एक मां अपने बच्चे की देखभाल के लिए सबसे उपयुक्त है, बशर्ते वह ऐसा करने की इच्छा व्यक्त करे।
कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि नवजात शिशु की मां बच्चे की देखभाल के लिए दुनिया की सबसे अच्छी व्यक्ति होती है। यदि वह अपने बच्चे की देखभाल करना चाहती है, तो यह मां और नवजात शिशु दोनों के हित में है। दरअसल, यह मामला एक रिट याचिका से उत्पन्न हुआ था, जिसमें अदालत ने पहले 27 दिसंबर 2024 को नाबालिग पीड़िता को अबॉर्शन कराने या समय से पहले डिलीवरी की अनुमति दी थी, जो उस समय 32 सप्ताह और 6 दिन की गर्भवती थी। आदेश में यह शर्त लगाई गई थी कि यदि बच्चा जीवित पैदा होता है तो राज्य सरकार बच्चे की जिम्मेदारी लेगी।
1 जनवरी को दिया बच्चे को जन्म
1 जनवरी को एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के बाद नाबालिग मां और उसके माता-पिता ने नवजात शिशु की कस्टडी की मांग करते हुए एक अंतरिम आवेदन दायर किया। उन्होंने अदालत को बच्चे और नाबालिग मां दोनों की सुरक्षा, पोषण और देखभाल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया। याचिका में प्राकृतिक स्तनपान की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया था, जो पहले के आदेश से बाधित हो रहा था। राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता के अनुरोध पर कोई आपत्ति नहीं जताई। सरकारी वकील ने पुष्टि की कि नवजात शिशु को शुरू में देखभाल के लिए आईसीयू में रखा गया था। अब उसे सुरक्षित रूप से उसकी मां को उसके माता-पिता की देखरेख में सौंपा जा सकता है।
राज्य सरकार को सहायता देने का निर्देश
कोर्ट ने आवेदन मंजूर करते हुए निर्देश दिया कि नवजात की कस्टडी नाबालिग मां को उसके माता-पिता की देखरेख में दी जाए। इसके अलावा कोर्ट ने राज्य सरकार को परिवार को जरूरत के अनुसार सहायता प्रदान करने तथा मां और बच्चे दोनों के लिए सभी चिकित्सा खर्च वहन करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार इस संबंध में कानून के अनुसार जहां भी और जब भी जरूरी हो, पीड़िता और उसके माता-पिता को सहायता प्रदान करेगी। इन निर्देशों के साथ कोर्ट ने बच्चे और नाबालिग मां के सर्वोत्तम हितों को प्राथमिकता देते हुए अंतरिम आवेदन और रिट याचिका का निपटारा कर दिया।
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