
इंदौर। राज्य सरकार द्वारा संपत्ति के पंजीयन के लिए लागू किए गए संपदा 2.0 का सॉफ्टवेयर फर्म और कंपनी के स्वामित्व की भूमियों में रजिस्ट्री कराने वाले व्यक्ति का नाम राजस्व अभिलेख में चढ़वा रहा है। इस गड़बड़ी के चलते पूरे मध्यप्रदेश में फर्म और कंपनियां बड़ी धोखाधड़ी का शिकार हो सकती हैं, क्योंकि जिस व्यक्ति का नाम स्वामित्व के रूप में राजस्व अभिलेखों में चढ़ जाएगा वह उक्त संपत्ति को बेच सकता है।
सरकार ने आनन-फानन में मध्यप्रदेश के सबसे बड़े रियल इस्टेट कारोबार के पंजीयन के लिए संपदा 2.0 नाम का साफ्टवेयर थोप दिया, जिसमें कई गड़बडिय़ों से हर दिन लोग जूझ रहे हैं, लेकिन अभी एक सबसे बड़ी गड़बड़ी सामने आई है कि यदि कोई पार्टनरशिप फर्म या कंपनी अपने किसी अधिकृत व्यक्ति या भागीदार से संपत्ति का पंजीयन कराती है तो संपदा के सॉफ्टवेयर में ऑनलाइन नामांतरण के लिए बजाय फर्म या कंपनी का स्वामित्व बताने के उस व्यक्ति का नाम राजस्व अभिलेख में भूस्वामी के रूप में दर्ज करने के लिए भेजा जा रहा है, जो व्यक्ति रजिस्ट्री संपादित करता है। इस मामले में यदि फर्म अथवा प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को इस बात का ज्ञान न हो कि राजस्व अभिलेखों में उनकी कंपनी का नाम भूस्वामी के रूप में दर्ज है या नहीं और पंजीयन कराने वाला व्यक्ति यदि धोखाधड़ी करना चाहे तो भूस्वामी के रूप में उक्त संपत्ति का विक्रय कर सकता है।
सरकार के कामधेनु विभाग के रूप में पहचाने जाने वाले पंजीयन विभाग से सरकार के खजाने में साल के 365 दिन धनवर्षा होती है। नागरिकों द्वारा खरीदी जाने वाली अचल संपत्ति के पंजीयन से सरकार को करोड़ों रुपए की आय प्राप्त होती है। सरकार द्वारा संपत्ति के दस्तावेजों के पंजीयन के लिए संपदा 2.0 की व्यवस्था को 1 अप्रैल 2025 से पूरे प्रदेश में एक साथ लागू कर पूर्व में चल रही संपदा 1.0 की व्यवस्था को अब पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है। उक्त सॉफ्टवेयर में ऑनलाइन पंजीयन करते समय प्राइवेट लिमिटेड कंपनी या भागीदारी फर्म द्वारा पंजीयन के दस्तावेज में हस्ताक्षर कंपनी के अधिकृत व्यक्ति या फर्म के भागीदार द्वारा किए जाते हैं। ऐसी स्थिति में संपदा 0.2 सॉफ्टवेयर अपने आप फार्म ए-2 (दावेदार द्वारा घोषणा) को नामांतरण हेतु तहसीलदार को जनरेट करता है। उसमें नामांतरण के लिए कंपनी या फर्म के नाम की जगह उसके अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता, अर्थात् व्यक्ति का नाम भेज देता है। इस कारण से राजस्व विभाग में नामांतरण क्रय करने वाली संस्था के नाम से न होकर उसके अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता के नाम से हो जाता है।
कंपनियों द्वारा कर्मचारी तक को अधिकृत किया जाता है
किसी भी भूमि के क्रय-विक्रय के लिए प्राइवेट लिमिटेड या लिमिटेड कंपनियों द्वारा हस्ताक्षर के लिए अपने कर्मचारी तक को अधिकृत किया जाता है। इसके लिए एक बोर्ड रिज्यूलेशन बनाया जाता है, जिसमें पंजीयन के लिए अधिकृत व्यक्ति का नाम स्पष्ट होता है। यह व्यक्ति केवल पंजीयन के लिए अधिकृत होता है, लेकिन सॉफ्टवेयर द्वारा ऑनलाइन नामांतरण प्रक्रिया के लिए उक्त निजी व्यक्ति का नाम दर्ज कर नामांतरण के लिए भेज दिया जाता है। दरअसल यह गलती इसलिए हो रही है कि ऑनलाइन नामांतरण के लिए जो नाम संपदा सॉफ्टवेयर द्वारा भेजा जाता है वह आधार कार्ड से उठाया जाता है और आधार कार्ड कंपनी का न होकर व्यक्ति का होता है और सॉफ्टवेयर में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि वह संपत्ति का क्रय करने वाले व्यक्ति का नामांतरण बिना आधार कार्ड की आवश्यकता के भेज सके। इसलिए हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति का नाम नामांतरण के फार्र्म-2 में चला जाता है। यदि समय रहते कंपनियों को सॉफ्टवेयर की इस गलती का अहसास न हो तो किसी बड़ी धोखाधड़ी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
सॉफ्टवेयर में सुधार के लिए प्रस्ताव भोपाल भेजा
इस संबंध में जब जिला पंजीयक दीपक शर्मा से चर्चा की गई तो उन्होंने स्वीकार किया कि इस संबंध में मेरे पास शिकायत आई थी। इस शिकायत का जब परीक्षण कराया गया तो यह पाया गया कि सच में इस तरह की स्थिति बन रही है। इस पर विभाग की ओर से तुरंत ऑनलाइन शिकायत टोकन क्रमांक 09861747310516 पर दर्ज कराने के साथ ही मुख्यालय को सॉफ्टवेयर में सुधार कार्य करने हेतु प्रस्ताव भेज दिया गया है।
तहसीलदार की भी जिम्मेदारी
अपनी गलती राजस्व विभाग पर ढोलते हुए उन्होंने कहा कि नामांतरण के लिए जाने वाली सूचना के नोटिस के साथ पूरी रजिस्ट्री की कॉपी तहसीलदार को भेजी जाती है। ऐसे में यह तहसीलदार का दायित्व है कि वह पूरे दस्तावेज को देखकर नामांतरण की स्वीकृति दे।
ऑनलाइन नामांतरण रद्द किए जाने पर ही ऑफलाइन का आवेदन
इस संबंध में खास बात यह है कि कंपनी या फर्म को यह पता भी चल जाए कि संपदा ने ऑनलाइन आवेदन के लिए फार्म-2 गलत भेज दिया है, तब भी वह ऑफलाइन आवेदन तब तक नहीं कर सकती, जब तक तहसीलदार द्वारा ऑनलाइन आवेदन रद्द न किया जाए।
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