
नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशायल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ती की जब्ती मुकदमेबाजी और स्थगन आदेश के कारण अटकी पड़ी है। इन संपत्तियों को ईडी ने धन शोधन निवारण कानून के तहत अनंतिम रूप से अटैच किया था।
जांच एजेंसी को धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत जांच के दौरान उन संपत्तियों को अस्थायी रूप से अटैच करने का अधिकार है, जिनके बारे में संदेह है कि वे अपराध की आय हैं। इस तरह के अनंतिम आदेश को जारी होने के 180 दिनों के भीतर उक्त कानून के न्यायाधिकरण की ओर से पुष्टि की जानी चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार ईडी ने 2005 से लेकर 2025 तक पीएमएलए के प्रभावी होने के बाद से 1.55 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति अचैट की है, जिनमें से 1.07 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्तियों की पुष्टि वित्तीय वर्ष 2024-25 के अंत तक न्यायाधिकरण की ओर से की जा चुकी है, लेकिन कानूनी बाधाओं के कारण 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक की जब्ती अभी भी अटकी हुई है।
ईडी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देशभर में 100 विशेष पीएमएलए अदालतें होने के बावजूद मनी लॉन्ड्रिंग मामलों की सुनवाई समय पर पूरी नहीं हो पाती। इसमें व्यवस्थागत व प्रक्रियात्मक बाधाएं आ रही हैं। कई अदालतें अन्य कानूनों के तहत मामलों के बोझ से दबी हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, अक्सर अंतरिम आवेदन, रिट याचिका और जमानत के मामले दायर होने से मुकदमे बाधित होते हैं। इनमें से कुछ मामले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचते हैं, जिससे पीएमएलए के तहत मुकदमों की निरंतरता और शीघ्र निपटान प्रभावित होता है।
इस बीच बीते बृहस्पतिवार को ‘ईडी दिवस’ पर आयोजित एक कार्यक्रम में प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक राहुल नवीन ने कहा कि एजेंसी की सजा दर 93.6 प्रतिशत है। क्योंकि अब तक अदालतों की ओर से तय किए गए 47 मामलों में से केवल तीन मामलों में ही आरोपी बरी हुआ है। एजेंसी प्रमुख ने कहा कि वह स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं कि धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत शुरू की गई कई जांचें बहुत लंबे समय से लंबित थीं, लेकिन इस साल हमारा ध्यान जांच पूरी करने और आखिरी आरोपपत्र तेजी से दाखिल करने के प्रयासों पर है।
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