
नई दिल्ली । लैटरल एंट्री (lateral Entry) के जरिए होने वाली नियुक्तियों (Appointments) में आरक्षण (Reservation) है या नहीं? केंद्र सरकार (Central government) ने राज्यसभा (Rajya Sabha) में इस बात का जवाब दिया है। केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह (Union Personnel Minister Jitendra Singh) ने बताया कि 2018 से लेकर अब तक कुल तीन बार विभिन्न सरकारी विभागों में कुल 63 लैटरल एंट्री ली गई है।
केंद्रीय मंत्री ने एक लिखित उत्तर में बताया कि कई विभिन्न पदों जैसे की संयुक्त सचिव, निदेशक, उप सचिव जैसे पदों के लिए की गई हैं। चूंकि यह नियुक्ति विशेष कामों के लिए और केवल एक सीट के लिए की जाती हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट के पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ बनाम फैकल्टी एसोशिएसन एवं अन्य मामले के निर्णय अनुसार इस पर आरक्षण लागू नहीं है।
गौरतलब है कि सरकार अपनी जरूरतों के मुताबिक यूपीएससी के माध्यम से लैटरल एंट्री के माध्यम से लोगों की नियुक्ति करता है। यह नियुक्ति ऐसे पदों पर की जाती है, जिन पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की तैनाती होती है। सीधे सरकार के लिए काम करने वाले इन अधिकारियों की नियुक्ति अलग-अलग विषयों पर इनकी जानकारी के माध्यम से की जाती है। सरकार इन्हें सीधे संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव का पद दे देती है। यह नियु्क्तियाँ विशेष कामों के लिए की जाती है, इनमें चुने गए व्यक्तियों के पास संबंधित विभाग के जुड़ी विशेषज्ञता रहती है।
लैटरल एंट्री के माध्यम से की जाने वाली नियुक्तियों की वजह से कई बार विवाद भी खड़ा हो जाता है। पिछले साल अगस्त में यूपीएससी द्वारा 45 पदों पर लैटरल एंट्री के जरिए भर्ती का नोटिफिकेशन जारी किया गया था। लेकिन इस विज्ञापन में एससी, एसटी और ओबीसी से जुड़े आरक्षण की जानकारी न होने पर हंगामा हो गया। इसके बाद यूपीएससी ने नोटिफिकेशन वापस ले लिया था।
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