
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने साफ कर दिया है कि एक से अधिक सीटों पर मतदाता के तौर पर रजिस्टर्ड व्यक्ति (Registered Person) चुनाव (Elections) नहीं लड़ सकता है। एससी ने शुक्रवार को उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग (Uttarakhand State Election Commission) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आयोग के स्पष्टीकरण पर रोक लगाने संबंधी आदेश को चुनौती दी गई थी। आयोग ने कहा था कि किसी उम्मीदवार का नामांकन पत्र केवल इसलिए खारिज नहीं किया जाएगा, क्योंकि उसका नाम एक से अधिक ग्राम पंचायतों की मतदाता सूची में शामिल है। जज विक्रमनाथ और जज संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और पूछा कि आयोग वैधानिक प्रावधानों के विपरीत कैसे जा सकता है।
राज्य निर्वाचन आयोग ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के जुलाई के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया कि स्पष्टीकरण प्रथम दृष्टया उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 के प्रावधानों के विपरीत प्रतीत होता है। एचसी के समक्ष याचिकाकर्ता ने कहा था कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई, जिनके नाम एक से अधिक मतदाता सूचियों में पाए गए। निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया कि किसी उम्मीदवार का नामांकन पत्र केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा कि उसका नाम एक से अधिक ग्राम पंचायत/क्षेत्रों/नगरपालिका निकायों की मतदाता सूची में शामिल है।
किन प्रावधानों का हुआ जिक्र
आयोग ने इसे लेकर 2016 के अधिनियम की धारा 9 की उपधारा (6) और उपधारा (7) का उल्लेख किया। उपधारा (6) में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति एक से अधिक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदाता सूची में या एक ही प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदाता सूची में एक से अधिक बार पंजीकृत होने का हकदार नहीं होगा, उपधारा (7) में लिखा है, ‘कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदाता सूची में पंजीकृत होने का हकदार नहीं होगा, अगर उसका नाम किसी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत या छावनी से संबंधित किसी भी मतदाता सूची में दर्ज है, जब तक कि वह यह नहीं दिखाता है कि उसका नाम ऐसी मतदाता सूची से हटा दिया गया है।’
एससी ने अपने फैसले में क्या कहा
हाई कोर्ट ने इसे लेकर कहा कि कानून में एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र या एक से अधिक मतदाता सूची में मतदाता के पंजीकरण पर स्पष्ट रूप से रोक लगाई गई है। यह एक वैधानिक रोक है, तो दिया गया स्पष्टीकरण धारा 9 की उपधारा (6) और उपधारा (7) के तहत रोक के विरुद्ध प्रतीत होता है। इसमें कहा गया है, ‘इस दृष्टिकोण से स्पष्टीकरण प्रथम दृष्टया धारा 9 की उपधारा (6) और उपधारा (7) के विपरीत प्रतीत होता है। इस पर रोक लगाने की आवश्यकता है। इस पर रोक लगा दी गई है और इस पर कार्रवाई नहीं की जाएगी।’
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