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क्या हवन-यज्ञ से हो सकती है बारिश? MP के वैज्ञानिक महाकाल मंदिर में कर रहे स्टडी

April 29, 2025

उज्‍जैन। हवन-पूजन सनातनी संस्कृति (Hawan-worship Sanatani culture) का एक अहम हिस्सा हैं, लेकिन क्या यज्ञ और हवन करने से बारिश (Rain) भी हो सकती है। जी हां, यही जानने के लिए अब वैज्ञानिक बारिश (Scientific Rain) पर हवन के प्रभाव का पता लगाने में जुट गए हैं। दरअसल, धुआं एक एरोसोल है। एरोसोल पार्टिकल्स बादलों को बनाने में मदद करते हैं। बादल बारिश लाते हैं और हवन करने से धुआं पैदा होता है। यही कारण है कि इन दिनों मध्य प्रदेश के वैज्ञानिकों का एक ग्रुप बारिश लाने में हवन के प्रभाव का पता लगाने के लिए स्टडी करने में लगा हुआ है।

मध्य प्रदेश काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक, आईआईटी इंदौर और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम) के वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने के लिए एक रिसर्च शुरू की है कि क्या सोम यज्ञ में औषधीय पौधे समोवल्ली का रस आग में डाला जाता है, जो पर्यावरण को शुद्ध कर सकता है तथा बादलों को बनाकर वर्षा ला सकता है।


बीते 24 अप्रैल को करीब 15 वैज्ञानिक अपने उपकरणों के साथ मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में इकट्ठे हुए, जहां संतों ने सोम यज्ञ किया। इस दौरान उन्होंने 24 से 29 अप्रैल के बीच विभिन्न गैसों के उत्सर्जन, तापमान और ह्यूमिडिटी में बदलाव, एरोसोल बिहेवियर और बादलों के बनने जैसी कई बातों की स्टडी की गई।

वैज्ञानिकों ने कहा कि अक्षय कृषि परिवार नाम के एक एनजीओ द्वारा कराई जा रही इस स्टडी का मकसद पारंपरिक कृषि पद्धतियों को आधुनिक पद्धतियों से जोड़ना है। इसका उद्देश्य धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं को मान्यता प्रदान करना है।

इस स्टडी में शामिल भारतीय मौसम विभाग से रिटायर्ड एक वैज्ञानिक राजेश माली ने कहा, “यह एक अनूठा प्रोजेक्ट है जो 24 अप्रैल को शुरू हुआई और अगले कुछ सालों तक चलेगा। इस प्रोजेक्ट में, हम कम से कम 13 इंस्ट्रूमेंट्स की मदद से विभिन्न चीजों को माप रहे हैं। दो मुख्य इंस्ट्रूमेंट क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर काउंटर (CCN काउंटर) और एक टेथरसॉन्ड (एक उपकरण जो वायुमंडलीय मापदंडों को मापता है) हैं। CCN बादल की बूंदों के ब्लॉक बनाने के लिए हवा में एरोसोल पार्टिकल्स की सांद्रता को मापता है। टेथरसॉन्ड, एक सेंसर वाला गुब्बारा है जो उस क्षेत्र में दबाव, तापमान और ह्यूमिडिटी को मापता है, जहां यज्ञ किया जा रहा है।”

उन्होंने बताया कि एरोसोल घटनाओं की गणना के लिए स्कैनिंग मोबिलिटी पार्टिकल साइजर (एसएमपीएस) नामक अन्य मशीन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

आईआईटीएम के रीजनल ऑफिस के एक अन्य वैज्ञानिक डॉ. यांग लियान ने कहा, ”माप पूरी होने के बाद हम पर्यावरण पर यज्ञ के प्रभाव का विश्लेषण करेंगे। हम दिन में चार बार डेटा नोट कर रहे हैं। दो बार यज्ञ के दौरान और फिर सुबह और शाम को डेटा लिया जा रहा है। तुलनात्मक डेटा हमें अपनी स्टडी पूरी करने में मदद करेगा।”

वहीं, इस रिसर्च में शामिल मध्य प्रदेश काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के डायरेक्टर अनिल कोठारी ने कहा, “यह अध्ययन विज्ञान और भारत की प्राचीन प्रथाओं के बीच सेतु का काम करेगा। यह पर्यावरण और विज्ञान के क्षेत्र में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।”

अक्षय कृषि परिवार के संयोजक गजानंद डांगे ने कहा कि इसका उद्देश्य सदियों से चली आ रही पारंपरिक मान्यताओं के लिए वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि यदि अध्ययन नाकाम रहता है, तो टीम ऐसी नई मशीनों की तलाश करेगी जो वायुमंडलीय बदलावों को बेहतर ढंग से माप सकें।

उन्होंने कहा, ”हमारा उद्देश्य यज्ञों की प्रभावकारिता और वेदों में वर्णित इसके प्रभाव पर सवाल उठाना नहीं है। हमारा प्रयास सहायक वैज्ञानिक साक्ष्य प्रदान करना है ताकि वैज्ञानिक इन पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल ग्लोबल वार्मिंग और सूखे जैसी समस्याओं से निपटने के लिए कर सकें।”
बातचीत में विशेषज्ञों ने अध्ययन के वैज्ञानिक आधार पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

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