वाशिंगटन। अमेरिका और ब्रिटेन (America-Britain) के अधिकारियों की एक सीक्रेट मीटिंग यूक्रेन के कुछ नेताओं के साथ हुई है। इस मीटिंग में वोलोदिमीर जेलेंस्की को राष्ट्रपति पद से हटाने पर बात हुई। रशिया टुडे की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका और यूके चाहते हैं कि जेलेंस्की की जगह पर पूर्व सेना प्रमुख वालेरी जालुझिनी को कमान सौंप दी जाए। यह जानकारी रूस की फॉरेन इंटेलिजेंस सर्विस ने दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी देशों के अधिकारी ने एक अज्ञात रिजॉर्ट पर जेलेंस्की के करीबी आंद्रे येरमाक और यूक्रेन के खुफिया प्रमुख किरिल बुडानोव के साथ मीटिंग की। इस बैठक में ब्रिटेन में यूक्रेन के राजदूत भी मौजूद थे।
एजेंसी का कहना है कि इस मीटिंग में सभी पक्षों ने सहमति जताई कि वोलोदिमीर जेलेंस्की को राष्ट्रपति पद से हटाने का यह सबसे सही समय है। उन्होंने कहा कि अभी उन्हें हटा देना चाहिए ताकि पश्चिमी देशों के साथ कीव के रिश्तों को बेहतर किया जा सके। इसके अलावा मिलिट्री ऐड पर भी अब नए नेता से ही बात की जाएगी। खबर है कि अमेरिका और ब्रिटेन के नेताओं ने यूक्रेन के अधिकारियों को यह भी बता दिया कि वे पूर्व सैन्य प्रमुख वालेरी जालुझिनी को राष्ट्रपति देखना चाहते हैं। इस पहल का जेलेंस्की के करीबियों ने समर्थन किया। यही नहीं आंद्रे येरमाक और यूक्रेन के खुफिया प्रमुख किरिल बुडानोव ने यह भी कहा कि जालुझिनी के साथ हम करने के लिए तैयार हैं।
हाल ही में जेलेंस्की एक बिल लेकर आए थे, जिसमें दो भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों के अधिकारों को कम किए जाने का प्रस्ताव था। इसकी यूक्रेन में तीखी निंदा हुई थी और विरोध शुरू हो गए थे। इसके अलावा पश्चिमी देशों ने भी इस पर सवाल उठाए थे। माना जा रहा है कि इस वाकये के बाद जेलेंस्की को हटाने का मूड अमेरिका और ब्रिटेन ने बना लिया।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पवर्तनेनी हरीश ने मंगलवार को कहा कि संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की तैयारी के दौरान हुए विचार-विमर्श से यह पुष्टि होती है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मानना है कि द्वि-राष्ट्र समाधान के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हरीश ने कहा, ‘‘हमारे प्रयास अब इस बात पर केंद्रित होने चाहिए कि उद्देश्यपूर्ण संवाद और कूटनीति के माध्यम से द्वि-राष्ट्र समाधान को कैसे हासिल किया जाए और संघर्ष में शामिल दोनों पक्षों को एक-दूसरे के साथ प्रत्यक्ष संवाद में कैसे शामिल किया जाए।’’
यह घोषणापत्र मध्य पूर्व में शांति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियां हैं। विशेष रूप से, इजरायल द्वारा ‘वापसी के अधिकार’ की मांग को स्वीकार करने की संभावना कम है, क्योंकि यह इजरायल की जनसांख्यिकीय संरचना को बदल सकता है। इसके अलावा, हमास के हथियार छोड़ने और गाजा पर नियंत्रण छोड़ने की संभावना भी अनिश्चित है। फ्रांस और सऊदी अरब ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से इस घोषणापत्र का समर्थन करने का आह्वान किया है यह देखना बाकी है कि क्या यह सम्मेलन मध्य पूर्व में दशकों पुराने संघर्ष को हल करने की दिशा में ठोस प्रगति ला सकता है।
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