
नई दिल्ली । भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला (Indian astronaut Shubhanshu Shukla) ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा (Space travel) के 10 दिन पूरे कर लिए हैं। वह आईएसएस (ISS) पहुंचने वाले पहले भारतीय हैं और स्पेस यात्रा करने वाले राकेश शर्मा के बाद दूसरे इंडियन। आईएसएस में उन्होंने ऐसे प्रयोगों पर काम किया है जो भविष्य में चांद, मंगल या किसी अन्य ग्रह पर जीवन बसाने की दिशा में बेहद अहम साबित हो सकते हैं। इसमें मांसपेशियों के कमजोर होने से लेकर, अंतरिक्ष में बीजों के अंकुरण, माइक्रो एल्गी से ऑक्सीजन और भोजन बनाने की संभावनाएं शामिल हैं।
शुभांशु शुक्ला ISS पहुंचने के ठीक 14 दिन बाद 10 जुलाई को धरती पर वापस लौटेंगे। शुक्ला का मिशन सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि मानव सभ्यता को धरती से आगे ले जाने की तैयारी है।
मांसपेशियों पर माइक्रोग्रैविटी का असर
शुभांशु का स्पेस में सबसे अहम प्रयोग ‘मायोजेनेसिस’ पर केंद्रित था, जिसमें यह जांचा गया कि गुरुत्वाकर्षण के बिना शरीर की मांसपेशियां कैसे और क्यों जल्दी कमजोर हो जाती हैं। शुभांशु ने सेलुलर और आणविक स्तर पर डाटा दर्ज किया, जिससे भविष्य में स्पेस मिशनों के लिए बेहतर कसरत या दवाएं विकसित की जा सकेंगी।
अंतरिक्ष में बीजों की खेती
स्प्राउट प्रोजेक्ट के तहत शुभांशु ने बीजों की सिंचाई और अंकुरण प्रक्रिया पर काम किया। इसका मकसद यह समझना है कि स्पेस में पौधे कैसे उगते हैं? ये बीज मिशन के बाद पृथ्वी पर उगाए जाएंगे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि अंतरिक्ष का पौधों की जेनेटिक्स और पोषण पर क्या असर होता है।
माइक्रो एल्गी से ऑक्सीजन और खाना
शुक्ला ने Space Micro Algae (अंतरिक्ष सूक्ष्म शैवाल) प्रयोग में माइक्रो एल्गी के सैंपल्स लगाए हैं। ये एल्गी भविष्य में स्पेस स्टेशन या चांद/मंगल कॉलोनी में ऑक्सीजन, भोजन और यहां तक कि बायो-फ्यूल का स्रोत बन सकती हैं।
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