
नई दिल्ली । भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला (Indian astronaut Shubhanshu Shukla) ने 18 दिन की ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा (Space travel) के बाद मंगलवार शाम 3:01 (भारतीय समयानुसार) सफलतापूर्वक पृथ्वी (Earth) पर लैंडिंग की। स्पेसएक्स (SpaceX) के ड्रैगन अंतरिक्ष यान ने कैलिफोर्निया तट के पास समुद्र में सुरक्षित ‘स्प्लैशडाउन’ किया। इस वापसी एक बार फिर उस बहस को हवा दे दी है कि क्या अंतरिक्ष से लौटते वक्त पानी में उतरना जमीन से ज़्यादा सुरक्षित है? यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि, अभी भी चीन और रूस समेत कई देश जमीन पर लैडिंग को प्राथमिकता देते हैं। 41 साल पहले भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने भी जमीन पर लैंडिंग की थी।
समुद्र में स्प्लैशडाउन कितना सुरक्षित
पहली नजर में समुद्र की नरम सतह लैडिंग के लिए ज़्यादा सुरक्षित लगती है। शुभांशु शुक्ला के एक्सियोम-4 और उससे पहले के कई अमेरिकी मिशनों में स्प्लैशडाउन का चयन सुरक्षा के लिहाज से किया गया। अंतरिक्ष कंपनी स्पेसएक्स के लिए यह विकल्प आसान है क्योंकि अंतरिक्ष यान का कुछ हिस्सा वापसी से पहले अलग कर दिया जाता है, अगर यह मलबा जमीन पर गिरेगा, तो आबादी और संपत्ति को नुकसान हो सकता है। समुद्र में गिरने से यह जोखिम टल जाता है। स्प्लैशडाउन के दौरान पानी का असर अंतरिक्ष यात्री के लिए सॉफ्ट होता है, जो अंतरिक्ष से घंटों की यात्रा के बाद थके हुए शरीर को राहत देता है।
जमीन पर लैंडिंग
समुद्र में स्प्लैशडाउन के मुकाबले जमीन पर उतरने की प्रक्रिया ज्यादा सटीक होती है और इससे समुद्री रिकवरी ऑपरेशन की जरूरत नहीं होती, फिर भी इसमें कई चुनौतियां हैं। रूस और चीन जैसे देश अब भी अपने अंतरिक्ष यात्रियों को ज़मीन पर उतारते हैं। रूस का सोयूज़ स्पेसक्राफ्ट दशकों से कज़ाखस्तान की विशाल सपाट धरती पर उतरता रहा है। चीन की शेनझोउ मिशन इनर मंगोलिया में लैंड करता है। यही नहीं भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा भी अप्रैल 1984 में सोयूज़ T-10 के ज़रिए कज़ाखस्तान के अर्कालिक मैदानों में उतरे थे।
जमीन पर लैंडिंग में क्या दिक्कत
राकेश शर्मा ने पिछले साल मीडिया से बातचीत में कहा था, “वापसी के वक्त ऐसा लगा कि शायद मैं बच न सकूं, जब पैराशूट खुलता है तो बहुत तेज आवाज होती है, जिसके लिए हम मानसिक रूप से तैयार नहीं थे।” जमीन पर लैंडिंग के दौरान झटका ज़्यादा होता है और इससे शरीर पर असर भी पड़ता है, खासकर तब जब यात्री महीनों तक माइक्रोग्रैविटी में रहे हों।
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