
नई दिल्ली: देश में चांदी की कीमतों में ताबड़तोड़ तेजी देखने को मिल रही है. यहां तक की सिल्वर की चमक के आगे सोना भी फीका पड़ गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक मार्केट में चांदी की कमी आ गई है. डिमांड में तेजी के चलते उसके भाव आसमान पर हैं. दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में चांदी 1.89 लाख रुपये प्रति किलोग्राम का आंकड़ा पार कर चुकी है, तो चेन्नई में यह 2 लाख रुपये तक पहुंच गई है. लोग बढ़ती कीमत के बावजूद भी सिल्वर खरीदना चाह रहे हैं. ऐसे में जमाखोरी, तेज डिमांड और सट्टेबाजी की आशंका के बीच सरकार भी सख्त हुई है. कॉमर्स मिनिट्री ने इस स्थिति पर नजर रखना शुरू किया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंत्रालय ये चेक कर रहा है कि भारी मात्रा में इंपोर्ट हुई चांदी आखिर कहां चली गई? क्या किसी ने इसे बड़े लेवल पर स्टॉक करके रख लिया है? ऑल इंडिया जेम्स एंड जूलरी डोमेस्टिक काउंसिल के चेयरमैन राजेश रोकड़े ने बताया कि मार्केट पैनिक मोड में है. जो बेच रहे हैं, वो मनमाने दाम वसूल रहे हैं. इसलिए हमने आसान डिलिवरी के लिए प्री-बुकिंग शुरू की है. दिल्ली के ऑल इंडिया जूलरी एंड गोल्डस्मिथ फेडरेशन के अध्यक्ष पंकज अरोड़ा ने कहा, ‘डिमांड बहुत बढ़ गई है. हालात जल्द ही नॉर्मल हो जाएंगे.’
भारत चांदी के बर्तन, ज्वेलरी, सिक्के, बार और सोलर एनर्जी व इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे इंडस्ट्रियल यूज के लिए चांदी पर डिपेंड करता है. रिपोर्ट्स कहती हैं कि देश अपनी 80% से ज्यादा चांदी की डिमांड इंपोर्ट से पूरी करता है. 2025 के पहले 8 महीनों में चांदी का इंपोर्ट 42% गिरकर 3,302 टन रह गया, जबकि इन्वेस्टमेंट डिमांड, खासकर ETF से, रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गई. मतलब डिमांड सप्लाई से ज्यादा तेज बढ़ी. इस उछाल ने 2024 के इंपोर्टेड एक्स्ट्रा स्टॉक को सोख लिया, जिससे शॉर्टेज हो गई. अब एक्स्ट्रा फॉरेन शिपमेंट की जरूरत है.
देश में चांदी के रेट्स बढ़ने से फंड मैनेजर्स की चिंता बढ़ गई है. सप्लाई की कमी से प्राइसेज ऊपर चढ़ रहे हैं. कोटक महिंद्रा एसेट मैनेजमेंट ने पहले ETF में इन्वेस्टमेंट कम किया था. UTI एसेट मैनेजमेंट कंपनी ने शनिवार को बताया कि UTI सिल्वर ETF फंड ऑफ फंड में नए लंपसम और स्विच-इन इन्वेस्टमेंट को 13 अक्टूबर 2025 से टेम्पररी बंद कर दिया गया है. कंपनी का कहना है कि ये डिसीजन मार्केट सिचुएशन और देश में फिजिकल चांदी की शॉर्टेज की वजह से लिया गया. चांदी के प्राइस इंटरनेशनल मार्केट से ज्यादा प्रीमियम पर हैं, जो फंड के वैल्यूएशन पर असर डाल रहा है.
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