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कभी नीतीश के चाणक्य, कभी खुलेआम किया विरोध; जानिए कौन हैं JDU के ललन सिंह?

December 29, 2023

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू में शुक्रवार को बड़ा बदलाव किया गया है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से ललन सिंह ने इस्तीफा दे दिया और नए राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार बनाए गए हैं. नीतीश कुमार ने ललन सिंह का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. बताया जा रहा था कि ललन सिंह की आरजेडी चीफ लालू यादव से लगातार नजदीकी बढ़ती जा रही थी. अंदरखाने पार्टी में खलबली मची हुई थी. यही वजह है कि नीतीश कुमार चुनाव से पहले पार्टी की कमान अपने हाथ में लेना चाहते थे.

बैठक के तुरंत बाद पत्रकारों से बात करते हुए ललन सिंह ने पार्टी में चल रही दरार की खबरों को सिरे से खारिज कर दिया. पत्रकारों की ओर से पूछा गया था क्या आप गुस्सा हैं, इस पर उन्होंने जवाब दिया कि गुस्सा? कैसा गुस्सा? मुझे गुस्सा क्यों होना चाहिए? यह पहली बार है जब मैं यह शब्द सुन रहा हूं. हालांकि पार्टी के नेता केसी त्यागी लगातार कह रहे थे कि पार्टी में सब कुछ ठीक चल रहा है और दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक JDU और INDIA गठबंधन को मजबूत करने व सीट शेयरिंग पर रणनीति बनाने के लिए बुलाई गई.

अब आपको बताते हैं कि राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह कौन हैं, जिनके हाथों में जेडीयू की कमान थी. वह लगभग 29 महीनों तक पार्टी के अध्यक्ष रहे. उन्हें जुलाई, 2021 में जेडीयू के अध्यक्ष पद की कुर्सी सौंपी गई थी. ललन सिंह को नीतीश कुमार का बेहद करीबी और चाणक्य माना जाता रहा है और उन्हें कर्पूरी ठाकुर का शिष्य कहा जाता है. वह पार्टी के उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने जेडीयू को खड़ा करने में अहम रोल अदा किया है. वह मौजूदा समय में मुंगेर लोकसभा सीट से सांसद हैं.


जेडीयू के गठन के समय ललन सिंह ने लालू यादव से अलग होकर नीतीश कुमार का साथ दिया था. दोनों नेताओं के बीच में कुछ समय के लिए मनमुटाव भी रहा. ललन सिंह ने खुलेआम नीतीश को चुनौती दी और कांग्रेस का साथ दिया. उन्होंने बिहार नवनिर्माण मंच बनाया, जिसके जरिए नीतीश कुमार के धुर विरोधियों को एक छत के नीचे लाने की कोशिश की, लेकिन वो ऐसा करने में सफल नहीं हो पाए. साल 2010 की बात है जब वह मुंगेर और बेगूसराय के इलाके में चुनाव प्रचार के लिए जाते थे तो उनकी गाड़ी पर कांग्रेस का झंडा दिखाई देता था.

ललन सिंह भूमिहार जाति से आते हैं, लेकिन इस जाति पर उनका दबदबा नहीं रहा है क्योंकि भूमिहार वोट का झुकाव बीजेपी की तरफ रहा है. सूबे के सियासी गलियारों में चर्चा रही है कि नीतीश के चलते ही ललन सिंह की पहचान बनी है. 1986 से शुरू हुई दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो गई थी कि पार्टी को 2005 में जीत मिलने के बाद उन्हें सुपर सीएम कहा जाने लगा था.

साल 2009 में लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी में शामिल किया था. उनका ये फैसला ललन सिंह को पसंद नहीं आया था और उन्होंने अपनी नाराजगी जगजाहिर कर दी थी और इस फैसले को तानाशाही करार दिया था. हालांकि बाद में कुशवाहा जेडीयू से अलग हो गए और अपनी नई पार्टी बना ली.

वहीं, ललन सिंह को 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन बाद में उन्हें जून 2014 में बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में चुना गया था. इससे पहले उन्हें 2004 और 2009 में के लोकसभा चुनाव में जीत मिली. 24 जनवरी 1955 को जन्मे ललन सिंह ने भागलपुर यूनिवर्सिटी के टी.एन.बी. कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है. वह कॉलेज छात्र संघ के महासचिव भी रहे हैं. 1974 में उन्होंने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलनों में भाग लिया था.

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