
विवेक उपाध्याय, जबलपुर। साल 2023 में विधान सभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद से एकदम शांत दिखाई दे रहे कांग्रेस के दिग्गज कमलनाथ ही सक्रियता ने जबलपुर में उनके चहेतों के चेहरे खिला दिए हैं। हालाकि, अभी कांग्रेसी इस खुशी का इजहार नहीं कर रहे हैं,लेकिन छिपा भी नहीं पा रहे हैं। बीते हफ्ते मांडू पार्टी के नव संकल्प शिविर में उनका बयान और छिंदवाड़ा में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं की कांग्रेस में वापसी, ये दोनों ऐसे घटनाक्रम हैं,जो ये साबित करते हैं कि कमलनाथ अभी भी पीछे हटने तैयार नहीं हैं। इसके अलावा नाथ ने हाल ही विधानसभा के मानसून सत्र में भी पूरी सक्रियता दिखाई और मीडिया से भी रूबरू हुए। उनके इस तरह से अचानक एक्टिव होने से कांग्रेस में प्रदेश स्तर पर कयासबाजी का दौर शुरु हो गया है।
अभी तो मैं जवान हूं:नाथ
नाथ ने मांडू के नव संकल्प शिविर में कहा था कि वे अभी थके नहीं है और ना ही पके हैं, बल्कि वे अभी भी जवान है और उन्हें बहुत काम करना है। उनके इस रुख से उन कांग्रेसियों का दिल बैठा जा रहा है, जो उनकी जगह लेने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी से हटाए जाने एवं छिंदवाड़ा से बेटे नकुलनाथ की हार के बाद नाथ ने मौन धारण कर लिया था। इस दौरान उनके भाजपा में जाने की अटकलें भी शुरु हुईं, लेकिन अंजाम तक नहीं पहुंची। इसके बाद नाथ की राहुल गांधी से मुलाकात हुई और तब लगा था कि नाथ राष्ट्रीय राजनीति में लौटेंगे,लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
फिर एक उम्मीद जागी है
कांग्रेसी सूत्रों की मानें तो कमलनाथ को केंद्रीय स्तर पर नई भूमिका मिलेगी और उनके करीबियों का प्रदेश संगठन में कद बढ़ाया जाएगा। माना जा रहा है कि प्रदेश में भाजपा सरकार के सामने विपक्ष की मजबूती उस लेवल की नहीं है,जैसी होनी चाहिए। इस स्थिति को बदलने के लिए संगठन नाथ का उपयोग करना चाहता है। उल्लेखनीय है कि कमल नाथ के नेतृत्व में ही वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस का सत्ता का वनवास समाप्त हुआ था लेकिन वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहद कमजोर प्रदर्शन के बाद प्रदेश कांग्रेस की कमान जीतू पटवारी को सौंप दी गई थी।
जबलपुर कांग्रेस पर नाथ का असर
जबलपुर कांग्रेस का सबसे मजबूत धड़ा हमेशा से ही कमलनाथ के सानिध्य में ही रहा है। कांग्रेस का संगठन कुछ भी कहता रहा हो,लेकिन उनके चहेतों ने नाथ के अलावा किसी की नहीं सुनी। पूरे महाकोशल में छिंदवाड़ा के बाद जबलपुर है,जहां नाथ ही अंतिम फैसला करते हैं। हालाकि,जबलपुर के कांग्रेसी खुद ही स्वीकार करते हैं कि नाथ की सरपरस्ती का कांग्रेस के संगठन को बहुत नुकसान हुआ, लेकिन निजी तौर पर कांग्रेसी खूब मालामाल हुए। बारम्बार ये साबित भी हुआ है कि जबलपुर के जिस कांग्रेस नेता ने कमलनाथ की ड्योढ़ी पर सिर नहीं झुकाया, उसे वो मुकाम नहीं मिल सका, जो उसे हासिल था। महाकोशल और विंध्य के कई और नेता नाथ के जादू को कम करने का प्रयास कर चुके हैं,लेकिन अब तक ऐसा हो नहीं सका है।
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