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पानी का अतिशोषण रोकें, पुराने तालाबों को पानीदार बनाएं

April 28, 2025

  • संस्था सेवा सुरभि के तत्वावधान में जलसंकट और पेयजल को लेकर कार्यशाला, विषय विशेषज्ञों ने रखे विचार

इंदौर। इंदौर के लोग पानीदार हैं और पानी को लेकर चिंता करने लगे हैं। पानी के प्रति संवेदनशीलता बनी रहना चाहिए। जब तक हम अपने परंपरागत जल स्रोतों को प्रदूषण और अतिक्रमण से नहीं बचाएंगे, पानी का अतिशोषण रोकने का प्रयास नहीं करेंगे, पुराने तालाबों को पानीदार नहीं बनाएंगे, पानी बचाने की दिशा में हमारे प्रयास सार्थक नहीं होंगे। पानी वाले बाबा के नाम से प्रख्यात मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणविद् डॉ. राजेंद्रसिंह ने संस्था सेवा सुरभि के तत्वावधान में प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यशाला में उक्त बातें कहीं। आपने कहा कि शहर को नए पेड़-पौधों की भी सख्त जरूरत है। धरती का बुखार बढ़ रहा है तो मौसम का मिजाज भी बदल रहा है। इसलिए इंदौर को फिर से हरा-भरा करें, इसके लिए संयुक्त प्रयास करने होंगे।

निगम आयुक्त शिवम वर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि शहर का शहरीकरण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे पानी की खपत भी बढ़ रही है। नागरिक यदि पानी की बर्बादी को रोकने में सहयोग दें और उपलब्ध जल का पूरी तरह सदुपयोग करें तो कोई ज्यादा संकट नहीं है। हमने बहुत से कुएं, बावड़ी चिह्नित कर उनका जीर्णोद्धार शुरू कर दिया है। हम चाहते हैं कि परंपरागत जल स्रोतों के आसपास पर्यटन स्थल भी बनाएं, ताकि लोगों की आवाजाही बनी रहे। इस अवसर पर डॉ. राजेंद्रसिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘पानी की पंचायत’ का लोकार्पण भी अतिथियों ने किया। अतिथियों को स्मृति चिह्न अतुल शेठ, कमल कलवानी ने भेंट किए। स्वागत ओमप्रकाश नरेड़ा, अनिल गोयल, पंकज कासलीवाल, गौतम कोठारी और अनिल मंगल ने किया। संचालन कुमार सिद्धार्थ ने किया। आभार माना डॉ. दिलीप वाघेला ने।\

32 शहरों में रामसर साइड वेटलैंड घोषित उसमें इंदौर भी…
पर्यावरणविद् डॉ. ओपी जोशी ने कहा कि यह खुशी की बात है कि देश के 32 शहरों में रामसर साइड वेटलैंड घोषित किए गए हैं, जिनमें इंदौर भी एक है। इंदौर को वाटर प्लस अवार्ड भी मिल चुका है। कम पानी के मामले में 2030 में 99 शहरों के सर्वे में इंदौर का 19वां स्थान है। यहां पानी का जो दोहन हो रहा है, वह पहले 120 प्रतिशत था, जो अब घटकर 100 प्रतिशत रह गया है। नए सर्वे में रतलाम के बाद इंदौर का दूसरा स्थान है। शहर में 6 स्थानों पर खंबाती कुएं लगाने की भी योजना है, जिनमें पानी धीरे-धीरे एकत्र होगा। सरकार ने 1157 करोड़ रुपए कान्ह और सरस्वती नदी को सुधारने पर खर्च कर दिए, लेकिन उसका लाभ नहीं मिला।

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