
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा (TMC MP Mahua Moitra) से उनकी उस याचिका (Petition) पर सवाल किए, जिसमें भारत में वैकल्पिक निवेश कोषों, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) और उनके मध्यस्थों के अंतिम लाभार्थियों तथा पोर्टफोलियो के सार्वजनिक खुलासे को अनिवार्य करने की मांग की गई है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करके संदेह के आधार पर जांच नहीं की जा सकती।
बेंच ने कहा कि आप सार्वजनिक खुलासे की मांग कर रही हैं। लेकिन इसका उद्देश्य क्या है? आप खुलासे का क्या करेंगी? क्या यह याचिका सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत है? आप अनुच्छेद 32 के तहत ऐसी याचिका नहीं दायर कर सकते जो सूचना के अधिकार की प्रकृति की हो। शीर्ष अदालत ने मोइत्रा की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण से याचिका में संशोधन करने और मामले में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के जवाब को चुनौती देने को कहा।
वकील प्रशांत भूषण ने क्या दलील दी
इससे पहले भूषण ने दलील दी कि वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) और एफपीआई के माध्यम से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया है। लेकिन न तो जनता और न ही सेबी को इस बारे में पता है कि आखिरकार इन निवेशों को कौन नियंत्रित करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि कई फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल स्वामित्व को छिपाने के लिए किया जाता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता सिर्फ इसलिए जानकारी चाहते हैं, ताकि कुछ पता लगाया जा सके और एक याचिका दायर की जा सके।
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