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सुप्रीम कोर्ट की प्रेम संबंधों पर टिप्‍पणी, कहा- प्यार करना अपराध नहीं, युवाओं को अकेला छोड़ दें

August 20, 2025

नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि प्यार (Love) दंडनीय नहीं है और इसे अपराध नहीं बनाया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किशोर (Teenager) या लगभग वयस्क (Adult) होने की कगार पर खड़े युवा अगर वास्तविक प्रेम संबंध में हैं तो उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ POCSO एक्ट के दुरुपयोग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

अदालत ने कहा कि POCSO बच्चों की सुरक्षा का महत्वपूर्ण कानून है, लेकिन इसमें शोषण और किशोरों के बीच सहमति आधारित संबंधों में फर्क करना जरूरी है। पीठ ने कहा, “क्या आप कह सकते हैं कि प्यार अपराध है? ऐसे मामलों में मुकदमे से किशोरों पर स्थायी आघात होता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की याचिकाओं को भी खारिज कर दिया। इन याचिकाओं में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उन आदेशों को चुनौती दी गई थी जिनमें मुस्लिम लड़कियों की यौवन प्राप्ति के बाद शादी को मान्यता दी गई थी।


पीठ ने कहा, “NCPCR का इसमें कोई ‘लॉकस’ नहीं है। यह अजीब है कि जो आयोग बच्चों की रक्षा के लिए है, वही बच्चों की सुरक्षा वाले आदेश को चुनौती दे रहा है। इन जोड़ों को अकेला छोड़ दीजिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
जब बेटियां घर से भाग जाती हैं तो कई मामले माता-पिता द्वारा दर्ज कराए जाते हैं, ताकि “मान–सम्मान” बचाया जा सके। अदालत ने चेतावनी दी कि सबको अपराध मानना “ऑनर किलिंग” को बढ़ावा दे सकता है। कोर्ट ने कहा, “रिश्ता सहमति से होने पर जब लड़के को जेल भेज दिया जाता है तो उसका मानसिक आघात कितना बड़ा होगा, यह समझना होगा।” अदालत ने कहा कि हर मामला अलग होता है और पुलिस को तथ्यों के आधार पर जांच करनी चाहिए, न कि सभी पर मुकदमा चलाना चाहिए।

सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि अभियोजन और सजा में भारी अंतर है। 2018-22 के बीच 16-18 वर्ष के 4,900 किशोरों पर बलात्कार का केस दर्ज हुआ, पर सिर्फ 468 दोषी ठहराए गए। सजा दर 9.55% है। इसी दौरान POCSO के तहत 6,892 मामलों में सिर्फ 855 दोषसिद्धि हुई। सजा दर 12.4%। 18-22 वर्ष के युवाओं में भी यही स्थिति रही। 52,471 गिरफ्तार, लेकिन सिर्फ 6,093 को POCSO में दोषी ठहराया गया।

पिछले महीने केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि POCSO की सहमति की उम्र 18 वर्ष से कम नहीं की जानी चाहिए। सरकार का तर्क है कि यह कानूनी सुरक्षा कवच कमजोर करेगा और बाल शोषण का खतरा बढ़ेगा।

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