
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को तमिलनाडु सरकार (Tamil Nadu Government) के उस कदम और रवैये नाराजगी जताई जिसमें नौकरी के बदले नकदी ‘घोटाले’ में 2,000 से अधिक लोगों को आरोपी बनाया गया है। कोर्ट ने कहा कि राज्य की तरफ से ऐसा इसलिए किया गया ताकि राज्य के पूर्व मंत्री वी सेंथिल बालाजी से जुड़े मुकदमों की सुनवाई में देरी हो सके। न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice Surya Kant) और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची (Justice Joymalya Bagchi) की पीठ ने इस प्रयास को ‘न्यायिक प्रणाली के साथ पूर्ण धोखाधड़ी’ बताया। इसने बालाजी से जुड़े सभी लंबित मामलों को शीर्ष अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई बुधवार के लिए निर्धारित की।
भावी CJI जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘‘हम जानना चाहेंगे कि मंत्री के अलावा कथित बिचौलिये कौन थे? मंत्री की सिफारिशों पर काम करने वाले अधिकारी कौन थे? चयन समिति के सदस्य कौन थे? नियुक्ति देने वाले अधिकारी कौन थे?’’ पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है कि मामलों में सुनवाई बालाजी के जीवनकाल में पूरी न हो पाए।
ताकि पूर्व मंत्री के जीवनकाल में मामलों की सुनवाई पूरी न हो पाए
इसने कहा कि गरीब लोग, जिन्हें पूर्व मंत्री या उनके गुर्गों ने नौकरी की खातिर पैसे देने के लिए मजबूर किया था, उन्हें रिश्वत देने वालों के रूप में फंसाया जा रहा है और ‘‘घोटाले’’ से जुड़े मामलों में आरोपी बनाया जा रहा है। पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और अमित आनंद तिवारी से कहा, ‘‘आप (राज्य) उन पर मुकदमा चलाने के लिए अधिक उत्सुक हैं, ताकि पूर्व मंत्री के जीवनकाल में मामलों की सुनवाई पूरी न हो पाए। यह आपकी कार्यप्रणाली है। यह व्यवस्था के साथ पूर्ण धोखाधड़ी है।’’
‘फोरम शॉपिंग’ का रास्ता अपना रहे
सिंघवी और तिवारी ने दावा किया कि याचिकाकर्ता वाई बालाजी कथित घोटाले के पीड़ितों की ओर से उच्च न्यायालय के बजाय सीधे शीर्ष अदालत का रुख करके ‘‘फोरम शॉपिंग’’ का रास्ता अपना रहे हैं। ‘फोरम शॉपिंग’ का मतलब वादियों की ओर से अपने मामलों की सुनवाई के लिए जानबूझकर उस अदालत या क्षेत्राधिकार को चुनने से है, जिनके बारे में उनका मानना है कि उन्हें अधिक अनुकूल फैसला हासिल होने की संभावना है।
सुनवाई लटकाने का प्रयास करने के आरोप
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने तमिलनाडु सरकार पर पूर्व मंत्री के साथ मिलीभगत करने और मुकदमे की सुनवाई लटकाने का प्रयास करने का आरोप लगाया। शीर्ष अदालत वाई बालाजी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के 28 मार्च के आदेश को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने कथित घोटाले से जुड़े मामलों में आरोपपत्रों को एक साथ जोड़े जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
कोर्ट की चेतावनी पर छोड़ा था मंत्री पद
अप्रैल में एक अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश की ओर से उच्चतम न्यायालय में दाखिल रिपोर्ट के मुताबिक, नौकरी के बदले नकदी ‘‘घोटाले’’ में तमिलनाडु के पूर्व मंत्री से जुड़े मामलों में लगभग 2,300 आरोपी हैं। वी सेंथिल बालाजी ने शीर्ष अदालत की फटकार के बाद 27 अप्रैल को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व वाले राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। उच्चतम न्यायालय ने 23 अप्रैल को बालाजी से कहा था कि वह ‘‘पद और आजादी के बीच’’ में से किसी एक को चुनें। न्यायालय ने उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर वह मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते हैं, तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाएगी। बता दें कि जस्टिस सूर्यकांत इस साल के अंत में देश के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं।
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