
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भारत संचार निगम लिमिटेड (Bharat Sanchar Nigam Limited) पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (MP High Court) के फैसले को चुनौती देने वाली पूरी तरह से औचित्यहीन याचिका (Frivolous Petition) दायर करने के लिए 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। यह याचिका पवन ठाकुर नाम के एक व्यक्ति से संबंधित थी, जो अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग कर रहा था।
पवन ठाकुर के पिता, जो BSNL में चपरासी थे, की 2000 में मृत्यु हो गई थी, और उनकी मां, जिन्हें 2009 में अनुकंपा के आधार पर नियुक्त किया गया था, की भी मृत्यु हो गई। पवन ने 2010 में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया, लेकिन BSNL की सर्कल हाई पावर कमेटी ने उनके दावे को खारिज कर दिया। 2018 में, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) ने BSNL के आदेश को रद्द कर दिया और पवन की नियुक्ति का निर्देश दिया।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अप्रैल 2025 में CAT के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि पवन, जो एक अस्थायी झुग्गी में रह रहे थे, को आवास के लिए अंक दिए जाने चाहिए, जिससे वे नियुक्ति के लिए पात्र हो गए। इसके बाद BSNL ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने BSNL के इस कदम पर कड़ा रुख अपनाया और कहा कि यह याचिका “पूरी तरह से निराधार” है और इसे दायर करने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने BSNL को निर्देश दिया कि वह दो सप्ताह के भीतर पवन ठाकुर को एक लाख रुपये का भुगतान करे और रजिस्ट्री में भुगतान का प्रमाण प्रस्तुत करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि BSNL इस राशि को उन अधिकारियों से वसूल सकता है, जिनके सुझाव पर यह याचिका दायर की गई थी। गैर-अनुपालन की स्थिति में कोर्ट ने “उचित आदेश” जारी करने की चेतावनी दी।
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