
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) से जुड़ी एक जनहित याचिका (Public interest litigation) को खारिज कर दिया। याचिका में सावरकर के संबंध में ‘कुछ तथ्यों को स्थापित’ कराने और उनके नाम के दुरुपयोग को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है, इसलिए अदालत इसमें दखल नहीं दे सकती।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह याचिका डॉ. पंकज फडणीस ने दाखिल की थी, जो स्वयं अदालत में पेश हुए। उन्होंने सावरकर का नाम “प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950” की अनुसूची में शामिल करने की मांग की थी। यह कानून कुछ नामों और प्रतीकों के व्यावसायिक या पेशेवर दुरुपयोग को रोकने के लिए लागू किया गया था।
फडणीस ने कोर्ट में कहा, “मैं 65 साल का हूं और पिछले 30 वर्षों से सावरकर पर शोध कर रहा हूं। मेरी प्रार्थना है कि लोकसभा अध्यक्ष को निर्देश दिए जाएं कि वे सावरकर का नाम इस अधिनियम की अनुसूची में शामिल करें। यह मेरा मौलिक कर्तव्य है। विपक्ष के नेता मेरे कर्तव्यों में बाधा नहीं बन सकते।”
इस पर पीठ ने कहा, “इसमें आपका कौन सा मौलिक अधिकार उल्लंघन हो रहा है? हम इस तरह की याचिकाएं नहीं सुन सकते। हमें इसमें हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं दिखता। मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती। याचिका खारिज की जाती है।”
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की सावरकर पर की गई टिप्पणी पर सख्त आपत्ति जताई थी। राहुल गांधी ने सावरकर को ब्रिटिशों का ‘सहयोगी’ बताते हुए उन पर ‘पेंशन लेने’ का आरोप लगाया था।
जस्टिस दीपनकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने राहुल गांधी की इन टिप्पणियों को गैर-जिम्मेदाराना बताया था और कहा था कि यदि उन्होंने दोबारा ऐसे बयान दिए, तो कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगा। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन पर फिलहाल रोक लगा दी है।
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