
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (national investigation agency) अधिनियम, 2008 के तहत आरोपियों या पीड़ितों की अपीलों (Appeals by victims)को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि 90 दिन से अधिक की देरी के बाद अपील दायर की गई है, इसलिए अपीलकर्ता को माफ नहीं किया जा सकता। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) अधिनियम की धारा 21(5) की वैधता को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने की समय सीमा से संबंधित है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘आरोपी या पीड़ितों द्वारा दायर अपील इस आधार पर खारिज नहीं की जाएगी कि 90 दिन से अधिक की देरी को माफ नहीं किया जा सकता।’’ यह आदेश प्रभावी रूप से वैधानिक प्रतिबंधों को खत्म करता है।
इस प्रावधान के अनुसार अपील निर्णय, सजा या आदेश के 30 दिन के भीतर दायर की जानी चाहिए और यदि अपीलकर्ता के पास कोई उचित कारण हो तो हाई कोर्ट 30 दिन के बाद भी अपील स्वीकार कर सकता है। NIA प्रावधान के अनुसार 90 दिन के बाद कोई अपील स्वीकार नहीं की जा सकती और यही दलीलों में विवाद का मुख्य कारण है।
पीठ ने पक्षकारों से कहा कि वे अगली सुनवाई की तारीख से पहले अपनी लिखित दलीलें तीन पृष्ठों में दें। पीठ सुशीला देवी और उस्मान शरीफ द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। सुशीला देवी और उस्मान शरीफ सहित अन्य व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं में इस कड़े प्रतिबंध को चुनौती दी गई थी। उनकी याचिका में तर्क दिया गया था कि यह बहुत कठोर है और अभियुक्तों या पीड़ितों के अधिकारों का उल्लंघन और उनके लिए हानिकारक है,क्योंकि उन्हें कम समय सीमा में वास्तविक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
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