ब्‍लॉगर

राष्ट्रकवि दिनकर: ममत्व तथा परत्व से अविचलित रहकर चिंतन की निष्ठा

– सुरेन्द्र किशोरी मात्र 20 साल की उम्र में 1928 में बारदोली विजय से लेकर रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, दिल्ली, सूरज का ब्याह, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, हारे को हरिनाम और भारत के गौरव ग्रंथ संस्कृति के चार अध्याय तक सामने लाने वाले हिंदी साहित्य के सूर्य राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर आज जीवित होते तो […]