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Tariff Effect: भारत की आर्थिक दर की रफ्तार पड़ सकती है धीमी, जानें क्या बोले अर्थशास्त्री

August 28, 2025

नई दिल्ली। देश की आर्थिक दर की रफ्तार (Country’s Economic Growth rate) वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में कुछ धीमी पड़ सकती है और उसके 6.7% पर रहने का अनुमान है। मिंट के सर्वेक्षण में शामिल देश के 22 अर्थशास्त्रियों (22 Economists) ने यह संभावना जताई है। जनवरी-मार्च की पिछली तिमाही में वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत थी। अमेरिकी ट्रैरिफ (American Tariff) का असर भी इस पर देखा जा सकता है। जीडीपी के आंकड़े गुरुवार को जारी किए जाएंगे।


सर्वे के मुताबिक, पहली तिमाही में वृद्धि दर के सुस्त पड़ने की प्रमुख वजह शहरी मांग में कमजोरी, निजी पूंजी निवेश की सुस्ती और औद्योगिक गतिविधियों की मंदी रही। हालांकि, मजबूत सरकारी पूंजीगत व्यय और अमेरिकी टैरिफ की अनिश्चितता के बीच अग्रिम निर्यात ने इस दौरान वृद्धि को सहारा दिया। अर्थशास्त्रियों ने पहली तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान 6.2% से 7.0% के बीच जताया है। औसतन अनुमान 6.7 फीसदी का है।

डीबीएस बैंक की अर्थशास्त्री राधिका राव के अनुसार, सरकारी खर्च में तेजी, ग्रामीण मांग और सेवा क्षेत्र की स्थिरता से अर्थव्यवस्था को सहारा मिला, लेकिन औद्योगिक उत्पादन की सुस्ती और पर्सनल लोन में धीमी वृद्धि ने शहरी मांग को प्रभावित किया। उनका मानना है कि अप्रैल-जून में कृषि और सेवाओं का प्रदर्शन स्थिर रहेगा, लेकिन उद्योग क्षेत्र कमजोर रह सकता है।

वहीं, इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि निजी निवेश और निर्यात पर टैरिफ की अनिश्चितता बनी रहती है तो आने वाले महीनों में वृद्धि और धीमी हो सकती है। हमें आशंका है कि 2025-26 में जीडीपी वृद्धि 6.0% तक सीमित रह जाएगी। इसका अनुमान पहले ही कई अन्य एजेंसियां भी जता चुकी हैं।

एसबीआई रिसर्च और आरबीआई का अनुमान
इससे पहले एसबीआई रिसर्च और आरबीआई ने अमेरिकी टैरिफ का आकलन करते हुए पहली तिमाही के लिए वृद्धि दर के 6.5 से 7.0 फीसदी के बीच रहने का अनुमान जताया था। एसबीआई रिसर्च के अनुसार, पहली तिमाही के लिए जीडीपी दर लगभग 6.8 से 7.0 प्रतिशत के बीच रह सकती है।

इसका मुख्य कारण निजी पूंजीगत व्यय में कमी है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि अमेरिका द्वारा 60 फीसदी शुल्क लगाए जाने के कारण, दूसरी तिमाही में कपड़ा, रत्न और आभूषण, चमड़ा, रसायन, कृषि, वाहन कलपुर्जा जैसे निर्यात उन्मुख क्षेत्रों क्षेत्रों में राजस्व और मार्जिन पर दबाव देखने को मिल सकता है।

जीएसटी सुधार से कम होगा जोखिम
वहीं, फिच रेटिंग्स ने मजबूत आर्थिक वृद्धि के चलते भारत की साख को ”बीबीबी-” पर कायम रखा है। एजेंसी के मुताबिक, भारत पर लागू 50 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क से चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 6.5 प्रतिशत वृद्धि दर अनुमान पर मामूली नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। फिच ने कहा कि यदि प्रस्तावित जीएसटी सुधार तेजी से अपनाए जाते हैं, तो इससे उपभोग को बढ़ावा मिलेगा तथा वृद्धि संबंधी कुछ जोखिम कम हो जाएंगे।

प्रभावित क्षेत्रों को मिलेगी मदद
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​ने बीते दिनों कहा था कि अमेरिकी आयात शुल्क का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा। लगभग 45% भारतीय निर्यात अमेरिका के टैरिफ दायरे से बाहर है, लेकिन कुछ क्षेत्र अधिक असुरक्षित बने हुए हैं। शेष 55% जैसे रत्न और आभूषण, कपड़ा, पन्ना, झींगा और एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) पर संभावित प्रभाव पड़ेगा। मल्होत्रा ​​ने भरोसा दिलाया कि यदि अर्थव्यवस्था के कुछ वर्गों को परेशानी होती है तो क्षेत्र-विशेष को मदद दी जाएगी।

चालू वित्त वर्ष के लिए अनुमान
– आरबीआई 6.5 प्रतिशत
– एडीबी 6.5 प्रतिशत
– आईएमएफ 6.4 प्रतिशत
– विश्व बैंक 6.3 प्रतिशत
– इंडिया रेटिंग्स 6.3 प्रतिशत
– इक्रा 6.3 प्रतिशत
– फिच 6.3 प्रतिशत
– एसबीआई रिसर्च 6.3 प्रतिशत

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