इंदौर न्यूज़ (Indore News) देश

थम नहीं रहे आंसू…भगवान के जाने पर

इंदौर। जैन समाज (Jain Samaj) के लिए आज का दिन सबसे कठिन है। समाज के वर्तमान के महावीर (Mahaveer) कहे जाने वाले आचार्य विद्यासागर महाराज (Acharya Vidyasagar Maharaj) ने देह त्याग दी और पूरी विधि के साथ समाधि ली। अपने भगवान के मानव शरीर छोड़े जाने से जैन समाज इस तरह विह्वल है कि उनकी आंखों के आंसू नहीं रुक रहे हैं। रात उनकी देह इस संसार को छोड़ चुकी थी। वह आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य थे। जब आचार्य ज्ञानसागर ने समाधि ली थी, तब उन्होंने अपना आचार्य पद मुनि विद्यासागर को सौंप दिया था। ऐसे में मुनि विद्यासागर महज 26 वर्ष की उम्र में ही 22 नवंबर 1972 में आचार्य हो गए थे।


तीन दिन पहले ही ले लिया था समाधि का निर्णय
आचार्य विद्यासागर महाराज ने तीन दिन पहले ही समाधी लेने का निर्णय ले लिया था और इसी के चलतेे मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि समयसागर को पद सौंप दिया। बताया जा रहा है कि 6 फरवरी को ही उन्होंने मुनि समयसागर और मुनि योगसागर को एकांत में बुलाकर अपनी जिम्मेदारियां उन्हें सौंप दी थीं। बता दें कि ये दोनों मुनि समयसागर और योगसागर उनके गृहस्थ जीवन के सगे भाई हैं।

कर्नाटक में हुआ था जन्म
आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा गांव में 1946 में शरद पूर्णिमा के दिन 10 अक्टूबर को हुआ था। आचार्य विद्यासागर महाराज के 3 भाई और दो बहनें हैं। तीनों भाइयों में से 2 भाई आज मुनि हैं और भाई महावीर प्रसाद भी धर्म कार्य में लगे हुए हैं। आचार्य विद्यासागर महाराज की बहनें स्वर्णा और सुवर्णा ने भी उनसे ही ब्रह्मचर्य लिया था। बता दें कि आचार्य विद्यासागर महाराज अब तक 500 से ज्यादा दीक्षा दे चुके हैं। हाल ही में 11 फरवरी को आचार्य विद्यासागर महाराज को गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड में उन्हें ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया।

माता-पिता ने भी ली थी समाधि
आचार्य विद्यासागर महाराज की माता का नाम श्रीमति और पिता का नाम मल्लपा था। उनके माता-पिता ने भी उनसे ही दीक्षा लेकर समाधि मरण की प्राप्ति की थी। पूरे बुंदेलखंड में आचार्य विद्यासागर महाराज छोटे बाबा के नाम से जाने जाते हैं, क्योंकि उन्होंने मप्र के दमोह जिले में स्थित कुंडलपुर में बड़े बाबा आदिनाथ भगवान की मूर्ति को मंदिर में रखवाया था और कुंडलपुर में अक्षरधाम की तर्ज पर भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया था।

दीपांजलि आज शाम…
पूज्य आचार्य के चरणों में एक दीप हमारा की भावना से दीपांजलि कार्यक्रम का आयोजन इंदौर के रीगल चौराहा स्थित महावीर कीर्ति स्तंभ पर रात्रि 8.18 पर आयोजित किया जा रहा है। दिगंबर जैन सोशल ग्रुप इंदौर रीजन, दिगंबर जैन सामाजिक संसद इंदौर और महावीर ट्रस्ट द्वारा उक्त कार्यक्रम होगा।
जिन उपासना का साधक चला सिद्धि की ओर

संत कमल के पुष्प के समान लोकजीवन रूपी वारिधि में रहता है, संचरण करता है, डुबकियां लगाता है, किन्तु डूबता नहीं है। यही भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, वर्तमान युग के महावीर, युग दृष्टा, संपूर्ण जीवलोक के संवाहक, जन-जन की आस्था के केंद्र, राष्ट्रसंत, आचार्य विद्यासागर महाराज के जीवन का मंत्रघोष था।
जन-जन के संत परम पूज्य आचार्य भगवन श्री विद्यासागरजी महामुनिराज ने आज रात 2.30 बजे संल्लेखनापूर्वक समाधि ले ली। छत्तीसगढ के डोंगरगढ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ पर उन्होंने अंतिम सांस ली। सभी शिष्यवृन्द के लिए यह समाचार किसी वज्राघात की तरह रहा। संपूर्ण जैन समाज ही नहीं, बल्कि भारतीय समाज के साथ-साथ विश्व में महावीर दर्शन को आदर्श मानने वाले प्रत्येक मनुष्य के लिए उन्होंने अपने जीवन का कण कण और क्षण क्षण होम करते हुए आशीष प्रदान किया।
आचार्यश्री ने अपने अमृत वचनों से जनकल्याण में रत व संयम साधना की उच्चतम सीढिय़ों पर आरोहण करते हुए समग्र देश मे पद विहार किया और सम्पूर्ण भारत भूमि के कण कण को अपनी पदरज से पावन किया। वीतराग परमात्मा के मार्ग पर पर चलने वाले इस महान पथिक संत का प्रत्येक क्षण जागरूक व आध्यात्मिक आंनद से परिपूर्ण रहा।

कठोर तपस्वी, दिगम्बर मुद्रा, अनंत करुणामय हृदय, निर्मल अनाग्रही दृष्टि, स्पष्ट वक्ता के रूप में उनके अनुपम व्यक्तित्व के समक्ष व्यक्ति स्वयं नतमस्तक हो जाते थे।
आचार्यश्री का ब्रह्म व्यक्तित्व भी उतना ही मनोरम था, जितना अंतरंग, त्याग-तपस्या में वज्र से कठोर, मुखमुद्रा सौम्यता और कोमलता से परिपूर्ण व्यक्तित्व होता है। स्वयं के यशोगान से अलिप्त व शोर शराबे से मिलों दूर, आडम्बर से दूर रहने के कारण विहार की दिशा व समय की घोषणा भी नही करते थे। वे मूक थे, लेकिन उनकी आंखें बोलती थी। वे सदाशय थे, सबसे प्रेम करते थे, उनके दर्शनों के लिए लाखों लोग तरसते थे, वे जहां जाते थे, वहां लोग पलक पावड़े बिछाते थे।

ऐसे महान योगी, साधक, चिंतक, विचारक, लेखक, दार्शनिक, ने कन्नड़ भाषी होते हुए भी हिंदी, संस्कृत, प्राकृत, बांग्ला और अंग्रेजी में लेखन किया। काव्य, अध्यात्म, दर्शन, व युग चेतना का संगम कही है तो उनके द्वारा रचित संसार मे सर्वाधिक चर्चित काव्य मूकमाटी महाकाव्य में है। संस्कृति, जन और भूमि की महत्ता को स्थापित करते हुए आचार्यश्री ने इस महाकाव्य के माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्जीवित किया। इसलिए उन्हें गिनिज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड ने देवता की उपाधि से सम्मानित किया।
आचार्यश्री के उपदेश, प्रवचन, वीतराग वाणी, प्रेरणा और आशीर्वाद से चैत्यालय, जिनालय, स्वाध्याय शाला, औषधालय, यात्री निवास, की स्थापना हुई और अनेक स्थानों पर निर्माण जारी है। मानवसेवा के लिए स्वास्थ्य नि:शुल्क सहायता केंद्र चल रहे है, जीव व पशु दया की भावना से देश के विंभिन्न राज्यो में दयोदय गौशालाएँ स्थापित हुई। सामाजिक जनजागरण अभियान किसी दल और समाज तक सीमित ना रहें अपितु इसमें सभी राजनीतिक दल, समाज, धर्माचार्यों और व्यक्तियों की सामूहिक भागीदारी रहें यही आचार्यश्री का उद्देश्य था।

ऐसे तपोनिष्ठ, दृढ़ संयमी, वीतरागी, नि:स्पृह, करुणामूर्ति, समदृष्टि-साधु के आदर्श मार्ग पर हम सभी चलने का प्रयास करें, यही उनके प्रति सच्ची आदरांजलि होगी।
दीपक जैन (टीनू) इंदौर, पूर्व पार्षद सह मीडिया प्रभारी भाजपा मध्यप्रदेश

संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज की समाधि से जैन समाज में शोक की लहर
संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर के समाधिलीन होने पर जैन समाज में शोक की लहर छा गई। जैन समाज सामाजिक संस्था के अध्यक्ष राजकुमार पाटोदी, सतीश जैन, दिगम्बर जैन महासमिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पवन जैन, डॉ. जैनेन्द्र जैन, अमित कासलीवाल, राकेश जैन विनायका, हंसमुख गांधी, टीके वेद, राजेश जैन, मुक्ता जैन, सारिका जैन, नरेन्द्र वेद, डी.के. जैन, मनीष अजमेरा, नकुल पाटोदी, संजय जैन, पिंकी टोंग्या, निर्मल सेठी आदि ने कहा कि आचार्यश्री का वियोग जैन समाज के लिए बहुत बड़ी श्रति है। दिगम्बर जैन समाज सामाजिक संसद के अध्यक्ष नरेंद्र वेद, महामंत्री डीके जैन एवं प्रवक्ता मनीष अजमेरा ने इसे अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा कि आचार्यश्री दिगम्बर परंपरा के शीर्ष संत थे, जिन्होंने समाज को दिशा दी। धर्म के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, हथकरघा जैसे क्षेत्रों में समाज को कार्य करने की प्रेरणा दी। सामाजिक संसद के नकुल पाटोदी, संजय जैन, पिंकी टोंग्या, राजेश नीता जैन, मुकेश टोंग्या, निर्मल सेठी, रवि जैन, नीरज जैन आदि ने आचार्यश्री के चरणों में विनयांजलि अर्पित करते हुए समाज की अपूरणीय क्षति बताया।

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