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Madras High Court: सरकारी नहीं है मंदिर का पैसा, केवल देवता का अधिकार; तमिलनाडु सरकार को झटका

August 30, 2025

नई दिल्‍ली । मद्रास हाई कोर्ट(Madras High Court) ने तमिलनाडु सरकार(Tamil Nadu Government) को झटका दिया है। कोर्ट की तरफ से कहा गया कि भक्तों द्वारा मंदिर को दान(Donation to the temple) किया गया धन केवल देवता का है। ऐसे में इसका इस्तेमाल केवल मंदिर के किसी काम के लिए या फिर धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए। इस फैसले के साथ ही हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा 2023 से 2025 के बीच जारी किए गए उन 5 आदेशों को भी रद्द कर दिया, जिनमें मंदिर के धन का उपयोग करके विवाह मंडपों का निर्माण करने को कहा गया था।


मंदिर की संपत्ति और धन को सरकार द्वारा व्यावसायिक रूप से उपयोग करने के खिलाफ दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि सरकार के पास मंदिर के धन का उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता का तर्क था कि सरकार ने जिन विवाह भवनों का निर्माण मंदिर के पैसे से करवाना चाहती है उसका कोई धार्मिक उद्देश्य नहीं है, क्योंकि इन्हें किराए पर दिया जा रहा है।

मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ के न्यायमूर्ति एस.एम सुब्रहमण्यम और न्यायमूर्ति जी. अरुल मुरुगन की बेंच ने इस सप्ताह की शुरुआत में यह आदेश पारित किया। पीठ ने कहा कि तमिल नाडु सरकार मंदिर के संसाधनों का उपयोग केवल मंदिरों के रखरखाव और विकास तथा उससे जुड़ी धार्मिक गतिविधियों पर करने के लिए बाध्य है। इसका उपयोग व्यावसायिक रूप से नहीं किया जा सकता।

हिंदू विवाह एक संस्कार, धार्मिक उद्देश्य नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

राज्य सरकार की तरफ से वकील वीरा कथिरावन ने तर्क दिया कि मंदिर के धन का उपयोग समाज के लिए ही किया जा रहा है। जिन भवनों का निर्माण किया गया है, उनमें धार्मिक रीति-रिवाजों के तहत किए जाने वाले हिंदू विवाह को ही अनुमित दी जाएगी। राज्य ने अदालत को आगे बताया कि अभी तक कोई पैसा जारी नहीं किया गया है और सभी प्रस्तावित निर्माण कार्यों के लिए आवश्यक अनुमति प्राप्त की जाएगी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने राज्य के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसने माना कि हिंदू विवाह को एक संस्कार माना जाता है, लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत इसमें संविदात्मक तत्व भी शामिल हैं। इसलिए, हिंदू विवाह एचआर एंड सीई अधिनियम के तहत अपने आप में एक “धार्मिक उद्देश्य” नहीं है

कोर्ट ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 का जिक्र करते हुए कहा कि यह अधिनियम मंदिर के धन को केवल धार्मिक कार्यों या धर्मार्थ उद्देश्यों जैसे की पूजा, अन्नदान, तीर्थ यात्रियों के कल्याण और गरीबों की सहायता के लिए खर्ज करने की अनुमित देता है, न कि किसी ऐसे काम के लिए, जिससे सरकार के राजस्व में वृद्धि हो।

संपत्ति पर देवता का अधिकार: HC

कोर्ट ने कहा, ” भक्तों द्वारा मंदिर या देवता को दान की गई चल और अचल संपत्ति पर देवता का अधिकार होता है। ऐसे में इसका उपयोग केवल मंदिरों में उत्सव मनाने के लिए या मंदिर के रखरखाव के लिए या विकास के लिए इसका उपयोग किया जा सका है। मंदिर के पैसे को सार्वजनिक पैसा या सरकारी पैसा नहीं माना जा सकता। यह पैसा हिंदू धार्मिक लोगों द्वारा दिया जाता है, यह उनके धार्मिक रीति-रिवाजों, प्रथाओं या विचारधाराओं के प्रति उनके भावनात्मक और आध्यात्मिक लगाव के कारण दिया गया है।”

अपने इस आदेश के साथ ही अदालत ने चेतावनी भी दी कि मंदिर के धन को स्पष्ट रूस से अनुमति प्राप्त उद्देश्यों के लिए ही खर्च किया जाना चाहिए। अनुमति का दायरा बढ़ाने का प्रयास किया जाता है तो फिर इस धन के दुरुपयोग और गबन का रास्ता खुल जाएगा। अदालत ने कहा कि इस तरह का दुरुपयोग “मंदिर के संसाधनों का दुरुपयोग” होगा और हिंदू श्रद्धालुओं के धार्मिक अधिकारों का भी उल्लंघन होगा, “जो आस्था के साथ मंदिरों में दान करते हैं।”

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