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BMC से लेकर बिहार चुनाव तक पर असर डालेगा ठाकरे बंधुओं का मराठी दांव, कांग्रेस कन्फ्यूज

July 08, 2025

मुम्बई। मराठी अस्मिता (Marathi identity) के मुद्दे पर ठाकरे बंधुओं (Thackeray brothers) य़ानी शिवसेना (UBT) के उद्धव (Uddhav) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (Maharashtra Navnirman Sena) के राज के एकजुट होने से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar assembly elections) से लेकर BMC यानी बृह्नमुंबई महानगर पालिका चुनाव (Brihanmumbai Municipal Corporation elections) समेत कई मुद्दे इसकी वजह बताए जा रहे हैं। फिलहाल, इसे लेकर कांग्रेस आलाकमान की ओर से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। खबर है कि शनिवार को मुंबई में हुए ठाकरे बंधुओं के कार्यक्रम से कांग्रेस ने दूरी बनाई थी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र कांग्रेस का मानना है कि ठाकरे बंधुओं का साथ आने का असर मुंबई में BMC चुनाव तक सीमित होगा। खास बात है कि कांग्रेस ऐसे हालात में मंच साझा करती नजर नहीं आना चाहती, वहीं वह शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे को भी नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती।


बातचीत में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, ‘वो अधूरे मन से दिया गया न्योता था। हमारे नेताओं को बुलाया गया था। एनसीपी कार्यक्रम में गई थी, लेकिन उनका अपमान किया गया। उनके नेताओं को बोलने के लिए भी नहीं बुलाया गया। ठाकरे मराठी आंदोलन का पूरा क्रेडिट लेना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘यह अच्छी बात है कि हम नहीं गए, क्योंकि कांग्रेस हिंदी विरोधी आंदोलन का हिस्सा नहीं थी। अजीबोगरीब बयानों के बाद भी हमारे नेताओं ने मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि उन्हें दिल्ली के निर्देशों की स्पष्ट जानकारी नहीं थी।’

एक नेता ने कहा, ‘ठाकरे बंधुओं की नजर सिर्फ BMC चुनाव पर है और हम वो अकेले लड़ना चाहते हैं। हमने BMC चुनावों के लिए किसी से गठबंधन नहीं किया था।’ एक अन्य नेता ने अखबार को बताया, ‘ठाकरे ने यह सब सिर्फ BMC में सत्ता हासिल करने के लिए किया है। हमारे विधायकों का मानना है कि हमें अकेले लड़ना चाहिए। हमारे पास जो जगह है, हम उसे छोड़ नहीं सकते। जब हम (उद्धव सेना) के साथ जाते हैं, तो अल्पसंख्यक वोट बैंक शिवसेना के साथ जाता है, लेकिन शिवसेना का वोट हमें नहीं मिलता।’

कन्फ्यूज है कांग्रेस
रिपोर्ट के अनुसार, एक नेता ने कहा, ‘यह एक जटिल स्थिति है। कांग्रेस के पास मुंबई में खास जनाधार नहीं है। हम ना ही मराठी मानूस के साथ हैं और ना ही गुजरातियों के साथ। हमारा जनाधार सिर्फ अल्पसंख्यकों में है, जो कुछ उन जगहों पर है जहां सपा और AIMIM उम्मीदवार उतारते हैं। उत्तर भारतीयों में हमारा थोड़ा जनाधार है, जो कि अगर राज के साथ हम नजर आए तो वो भी चला जाएगा। कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा वोट बेस बचा नहीं है। हम पूरी तरह से कन्फ्यूज हैं।’

स्टेट यूनिट से भी नाराजगी
अखबार के मुताबिक, कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग पार्टी की स्टेट यूनिट के कामकाज से भी नाखुश है। एक नेता बताते हैं, ‘कोई भी यहां पहल नहीं कर रहा है, क्योंकि छोटे से कार्यक्रम के लिए भी आपको दिल्ली से इजाजत लेनी पड़ती है। महाराष्ट्र पार्टी नेतृत्व इस बात को लेकर ठोस कदम नहीं उठा पा रही है कि हमें हिंदी विरोधी रुख रखना चाहिए या नहीं। ऐसे में वो बीच में अटके हैं।’

उन्होंने कहा, ‘यह मराठी मुद्दा नहीं है, बल्कि हिंदी थोपे जाने का मुद्दा है। अगर पहली क्लास से हिंदी थोपी जाएगी, तो मराठी पर असर होगा। यह लॉजिक है।’ पार्टी के अंदरूनी सूत्र ने कहा, ‘हमने (हिंदी थोपे जाने के मुद्दे) पर बोला, लेकिन मनसे और शिवसेना (यूबीटी) ने लोगों को पीटने जैसा आक्रामक रुख अपनाया। उन लोगों ने इसे एकदम नजर में आने वाला बना दिया, क्योंकि मीडिया को ऐसी खबरें पसंद हैं। कांग्रेस के साथ एक परेशानी यह भी है कि दिल्ली उन्हें जय हिंद यात्रा, संविधान सम्मान सम्मेलन आदि करने के निर्देश दे रहा है, जहां सिर्फ कट्टर कांग्रेस ही शामिल होंगे।’

उन्होंने आगे कहा, ‘इनमें कोई सक्रिय भागीदारी नहीं, क्योंकि जो व्यक्ति पार्टी का नहीं है, वह इन नारों से उत्साहित नहीं होता है। हमें कृषि दरें, कानून और व्यवस्था, भ्रष्टाचार जैसे लोगों के मुद्दे उठाने चाहिए। हमें सड़कों पर होना चाहिए, जरूरी नहीं है कि यह काम ठाकरे के नेतृत्व में हो।’

बिहार चुनाव
कहा जा रहा है कि बिहार चुनाव ने भी कांग्रेस की दुविधा और बढ़ा दी है, क्योंकि पार्टी राज ठाकरे के साथ नजर आई, तो इसका असर पड़ सकता है। राज को उत्तर भारतीय विरोधी और हिंदी विरोधी के तौर पर देखा जाता है। कांग्रेस के एक नेता ने अखबार से कहा, ‘हमें हिंदी पर एक स्पष्ट निर्देश की जरूरत थी। हम खुलकर आंदोलन में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं हुए, क्योंकि यह हिंदी विरोधी संदेश देता है। यह सेक्युलरिज्म पर बहस जैसा है। हम बहुत धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं और हमें मुस्लिम समर्थक के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में जब हाईकमान से कोई निर्देश नहीं होंगे, तो हम कैसे संदेश आगे बढ़ाएंगे।’

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