
कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी हत्या (Murder) के मामले में हथियार की बरामदगी न होना मुकदमे को झूठा या कमजोर नहीं बनाता, अगर सबूतों (Evidence) से यह साबित हो जाए कि हत्या हुई है। यह टिप्पणी अदालत ने 1999 के एक हत्या के मामले में तीन दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए दी।
न्यायमूर्ति देबांगसु घोष और मोहम्मद शब्बर राशिदी की खंडपीठ ने शुक्रवार को दिए अपने फैसले में कहा जब यह साबित हो चुका है कि पीड़ित की हत्या हुई है, तो हथियार की बरामदगी न होना या आर्म्स एक्ट की धारा के तहत आरोप न लगना केस को अविश्वसनीय नहीं बनाता। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने पुख्ता सबूतों के आधार पर आरोप साबित किए हैं, इसलिए ट्रायल कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
गौरतलब है कि 19 जून 1999 को पूर्व बर्दवान जिले के केतुग्राम में एक नाव पर यात्रा कर रहे श्रीराम घोष की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शिकायत के मुताबिक, आरोपी धनु घोष ने पाइप गन से श्रीराम के गले में गोली मारी थी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। शिकायतकर्ता और मृतक के बड़े भाई गोपीनाथ घोष ने बताया कि हत्या पुरानी दुश्मनी के चलते की गई थी। अदालत ने कहा कि हत्या के मामले में तीन चश्मदीद गवाह मौजूद हैं, इसलिए हत्या का मकसद साबित करना जरूरी नहीं रह जाता।
दोषियों के वकील ने दलील दी कि अभियोजन पक्ष अपराध साबित नहीं कर सका क्योंकि हत्या में इस्तेमाल पाइप गन या गोली कभी बरामद नहीं हुई। वहीं, राज्य सरकार के वकील ने कहा कि चश्मदीद गवाहों के बयान पूरी तरह सुसंगत और विश्वसनीय हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दोषी वही थे जिन्होंने हत्या की।
अदालत ने कहा कि बचाव पक्ष द्वारा यह कहना कि उन्हें झूठा फंसाया गया, ‘दो धार वाली तलवार’ साबित हो सकता है क्योंकि यह बयान ही हत्या के पीछे की दुश्मनी का कारण दर्शाता है। हम इस बचाव पर भरोसा नहीं कर सकते। पिछली रंजिश के कारण हत्या की गई, यह तथ्य ही अभियोजन के दावे को मजबूत करता है। इस तरह, अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा।
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