
इंदौर। सुपर कॉरिडोर (Super Corridor) स्थित 1 लाख 30 हजार स्क्वेयर फीट का विशाल और बेशकीमती भूखंड (prized plots) आखिरकार 83 करोड़ 40 लाख रुपए में एक ट्रस्ट को आबंटित करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट में प्राधिकरण (IDA) द्वारा दायर की गई एसएलपी (SLP) बीते दिनों खारिज हो गई थी। उसके बाद सम्पदा शाखा को आबंटन की प्रक्रिया अभी पूरी करना पड़ी। दरअसल, इंदौर हाईकोर्ट (indore high court) ने प्राधिकरण को निर्देश दिए थे कि वह उक्त ट्रस्ट का टेंडर मंजूर कर 30 दिन में आबंटन-पत्र सौंपे। मगर प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट चला गया, जहां उसे हार का मुंह देखना पड़ा। दरअसल, हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर आपत्ति ली कि प्राधिकरण ने लगातार चार बार एक ही आवेदक यानी ट्रस्ट द्वारा जमा किए टेंडर को निरस्त कर दिया, जो कि उचित नहीं है। हर बार टेंडर प्राधिकरण द्वारा तय की गई राशि से अधिक कीमत के जमा किए गए।
वैसे तो प्राधिकरण को ये अधिकार है कि वह अपने द्वारा बुलाए गए टेंडर को निरस्त कर दे। मगर इस मामले में एक नहीं, चार बार प्राधिकरण ने देवी शकुंतला ठकराल चैरिटेबल फाउंडेशन के टेंडरों को निरस्त कर दिया। सबसे पहले प्राधिकरण ने 02.12.21 को सुपर कॉरिडोर के भूखंड क्रमांक 4-ए, जिसका क्षेत्रफल 12637 वर्ग मीटर यानी 1 लाख 30 हजार वर्गफीट के लिए टेंडर जारी किया और आरक्षित मूल्य 22821 रुपए प्रति वर्ग मीटर तय किया गया। जबकि कलेक्टर गाइडलाइन 19200 की ही थी। उस वक्त ट्रस्ट ने 34962 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से टेंडर जमा किया। मगर प्राधिकरण बोर्ड ने 07 मार्च 2022 को यह टेंडर यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि इससे अधिक कीमत प्राप्त होगी और दूसरी बार प्राधिकरण ने जो टेंडर जारी किया उसमें आरक्षित मूल्य 35 हजार रुपए स्क्वेयर मीटर रखा और इसी ट्रस्ट ने 51753 रुपए प्रति वर्गमीटर की दर से टेंडर जमा कर दिया। मगर फिर प्राधिकरण बोर्ड ने यह टेंडर भी निरस्त कर दिया। तत्पश्चात तीसरी बार भी प्राधिकरण ने 18.05.2022 को निरस्त कर दिया और जब प्राधिकरण ने 05.04.2023 को टेंडर बुलाय उसमें रिजर्व प्राइज 65 हजार रुपए प्रति वर्गमीटर रखी और उक्त ट्रस्ट ने 66 हजार रुपए प्रति वर्गमीटर की दर से टेंडर जमा किया। मगर इसे भी प्राधिकरण ने यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि सुपर कॉरिडोर का ही एक भूखंड 26-सी के लिए 83208 रुपए प्रति वर्गमीटर का रेट मिला है। जब 4 बार ट्रस्ट के टेंडर निरस्त हुए तो उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि जिस भूखंड के लिए अधिक रेट मिला है उसका आकार छोटा है और बड़े आकार के भूखंड का रेट उससे कम ही रहेगा और प्राधिकरण लगातार चार बार एक ही आवेदक के टेंडर निरस्त करता रहा, जबकि हर बार उसने रिजर्व प्राइज से अधिक दर पर टेंडर जमा किए। लिहाजा हाईकोर्ट ने 30 दिन में ट्रस्ट को भूखंड आबंटन करने के निर्देश दिए और चौथी बार जो उसने टेंडर भरा था उसी 66 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से ये आबंटन करने को कहा। उसके बाद प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई, जो खारिज हो गई। नतीजतन अब उक्त ट्रस्ट को 83 करोड़ 40 लाख रुपए में उक्त भूखंड का आबंटन करना पड़ा। अभी पिछली बोर्ड बैठक में इस बारे में निर्णय लिया गया, जिसके चलते सम्पदा शाखा ने आबंटन की प्रक्रिया शुरू कर दी।
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