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नोट पर चोंट… वित्त मंत्री में खोट…

December 19, 2025

रुपया (Rupee) मर रहा है… डॉलर (Dollar) चढ़ रहा है… नियंत्रण निरंकुश हो चुका है… वित्त संभाले नहीं संभल रहा है… स्थिति विस्फोटक (Explosive) बनती जा रही है… कारोबार की मौत नजर आ रही है… निर्यात घट रहा है… आयात बढ़ रहा है… इतनी दयनीय स्थिति देश ने कभी नहीं देखी जब भारत की मुद्रा दुनिया की 31 प्रमुख करंसी में तीसरी सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गई हो… हम गिरते जा रहे हैं और दुनिया की गिरावट पर नजर डाल रहे हैं… लेकिन हकीकत यह है कि रुपए की हमसे ज्यादा गिरावट केवल तुर्किये की लीरा और अर्जेंटीना के पैसों में हुई है… लेकिन हमारा रुपया हर साल गिरता जा रहा है… इस साल तो रुपया डॉलर के मुकाबले 6 प्रतिशत से ज्यादा कमजोर हो गया है… और गिरावट की यही रफ्तार रही तो हमारा रुपया डॉलर के मुकाबले 100 रुपए को टच कर जाएगा… हमारे नेता इस गिरावट को सोने की कीमतों में वृद्धि और डॉलर की मांग में वृद्धि बताते हैं, लेकिन सोने के दाम तो पूरी दुनिया में बढ़े हैं और डॉलर की मांग भी अंतर्राष्ट्रीय है, फिर पूरी दुनिया में केवल हमारा रुपया ही क्यों गिरा… हम जानते हैं पर मानते नहीं हैं… हम समझते हैं पर नासमझ बनते हैं… हम सहते हैं पर कहते नहीं हैं… दरअसल इस गिरावट का कारण हमारी सरकार का अहंकार और वित्त प्रबंधन का अभाव है… हम कभी कानून के ज्ञानी अरुण जेटली को वित्त मंत्री बना डालते हैं तो कभी निर्मला सीतारमण को ले आते हैं… डॉक्टर से इंजीनियरिंग करवाते हैं और इंजीनियर को अस्पताल थमाते हैं… बजट अधिकारी बनाता है और वित्त मंत्री बैग थामकर फोटो खिंचवाते हैं फिर खैरात का तमगा लगाकर सीना चौड़ा कर जाते हैं… खतरे ने तब ही आहट दे दी थी जब रुपए ने गिरावट शुरू की थी, लेकिन अब रुपया खाई के मुहाने पर पहुंच चुका है… जहां अर्थव्यवस्था की मौत और मातम ही नजर आ रहा है… भले ही हम अब मोदीजी को समझाएं या वित्त मंत्री को झंझोडऩे जाएं… लेकिन रुपया कैंसर की लास्ट स्टेज पर पहुंच चुका है… इसे बढऩे-चढऩे से रोकने का कोई इलाज नहीं बचा है… और अगले तीन माह में एक डॉलर हमारे सौ रुपए झपट लेगा और हम बोरे में भरकर नोट लेकर जाएंगे और मुट्ठी में डॉलर लाएंगे… हम मोदीजी के दुनिया भ्रमण के गीत गाएंगे और देश में गिरते रुपए का विलाप मनाएंगे… ट्रंप दोस्ती की डींगें हाकेंगे और हर दिन टैरिफ बढ़ाएंगे… हम पुतिन को भारत बुलाएंगे और हथियार खरीदकर डॉलर गंवाएंगे… हम शेयर बाजार संभाल नहीं पाएंगे और विदेशी निवेशक दूर भागते जाएंगे… हम अडानी को अंबानी बनाने लग जाएंगे और टाटा-बिड़ला दुबक जाएंगे… हम नेहरू को कटघरे में खड़ा कर इल्जाम लगाएंगे और यह भूल जाएंगे कि जब भारत आजाद हुआ, तब डॉलर और रुपया दोनों बराबर थे… यानी एक रुपए में एक डॉलर मिलता था… आजादी के बाद से मनमोहन सरकार तक डॉलर 60 तक पहुंचकर 42 पर आ गया और अमेरिका रुपए की ताकत देखकर चकरा गया… लेकिन अब न मनमोहन है न वित्त के मनमोहक… लिहाजा रुपया मरणासन्न होता जा रहा है और डॉलर अपना कद बढ़ा रहा है… विपक्ष में रहकर गिरते रुपए पर दहाडऩे वाले और सरकार को हिलाने वाले मोदीजी अब मुर्दा होते रुपए से बेखबर हैं और विपक्ष खामोश… रुपए की गिरावट महंगाई बढ़ाएगी और लाड़ली बहनों की खैरात भी भूख नहीं मिटा पाएगी… समय रहते संभल जाइए… अच्छा वित्त मंत्री लाइए… डॉलर पर लगाम लगाइए, वरना बुझी हुई सरकार घर रोशन नहीं कर पाएगी… निर्मला सीतारमण न निर्मल रह पाएंगी और न वित्त संभाल पाएंगी…

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