
– डॉ. विश्वास चौहान
भारतीय संसदीय लोकतंत्र की विशेषता सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल की पारस्परिक जवाबदेही की प्रणाली और एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विचार-विमर्श प्रक्रिया में प्रकट होती है।जो भारतीय संविधान में निहित है । संसदीय विपक्ष लोकतंत्र के वास्तविक सार के संरक्षण और लोगों की आकांक्षाओं व अपेक्षाओं के प्रकटीकरण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किंतु, वर्तमान में भारत का संसदीय विपक्ष न केवल खंडित है, बल्कि अव्यवस्थित या बेतरतीबी का शिकार भी नज़र आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद ही हमारे पास कोई विपक्षी दल है, जिसके पास अपने संस्थागत कार्यकलाप के लिये या समग्र रूप से ‘प्रतिपक्ष’ के प्रतिनिधित्व के लिये कोई विजन या रणनीति हो।
इन नेताओं के विचार आज के युवाओं और युवतियों की आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा को संबोधित नहीं करते है; ना ही आने वाले समय की चुनौतियों से निपटने की इनके पास कोई योजना या दूरदृष्टि है। सिर्फ सत्ता के लिए राजनैतिक विरोध या भ्र्ष्टाचार न कर पाने की कुंठा से ग्रस्त विपक्ष की तरह प्रतीत हो रहा है ।
वर्तमान भारतीय विपक्ष की तुलना में यदि वैश्विक चिंतन करें तो पाएंगे कि पिछले माह चिले (Chile) के चुनावों में एक 35 वर्षीय युवा, गेब्रियल बोरिच, ने विजय प्राप्त की और वह चिले के अगले राष्ट्रपति होंगे। बोरिच ने आर्थिक असमानता घटाने, समृद्ध वर्ग पर कर का भार बढ़ाने, एवं पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के प्लेटफार्म पर चुनाव लड़ा था। साथ ही, उन्होंने चिले के लिए एक नए संविधान का समर्थन किया था क्योकि उनके अनुसार पुराना संविधान एक तानाशाह के समय में ड्राफ्ट किया गया था जो आज के समय के लिए अनुपयुक्त है।
यही स्थिति फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल माक्रों की थी जिन्होंने 39 वर्ष की आयु में अपने चुनाव प्रचार में सभी फ्रेंच नागरिको को कठिन निर्णयों के लिए आगाह किया था। उन्होंने बताया था कि कठोर श्रम कानून के कारण युवाओ को जॉब नहीं मिल रहा था क्योकि कंपनियों को डर लगता है कि वे किसी भी कर्मचारी को नहीं निकाल पाएंगे भले ही कंपनी दिवालिया हो जाए। अतः उन्होंने कहा कि अगर वे चुनाव जीत गए तो वे नौकरी पे रखने और निकालने के नियम में ढील दे देंगे।
दूसरे शब्दों में, इन नेताओं ने अपने मतदाताओं को एक व्यस्क नागरिक के रूप में ट्रीट किया; किसी भी फ्री की सेवा (जैसे कि बिजली-पानी इत्यादि) का वाद नहीं किया; आने वाले समय की चुनौतियों का वर्णन किया और उनसे निपटने के लिए अपने विचार प्रस्तुत किये।
इसके विपरीत भारत में प्रतिपक्ष के तथाकथित “युवा” नेता घिसे-पिटे विचारो को लेकर चुनाव मैदान में है। फ्री की बिजली-पानी का वादा कर रहे है। साम्प्रदायिकता से निपटने के बारे में नारे दे रहे है; लेकिन यह नहीं बतलाते कि किसी कुत्सित विचारधारा के आधार पर भारत पर आतंकी हमला करने वालो से कैसे निपटेंगे?
हमारे “युवा” नेता सिर्फ और सिर्फ जातिवाद और फ्री के बिजली-पानी की बात कर रहे हैं। उनका पूरा प्लेटफार्म ही इस बात का है कैसे “उनकी” जाति वालो को आरक्षण मिल सके, कैसे सेकुलरिज्म के स्लोगन पे भारत के बहुसंख्यक समाज का मजाक उड़ा सके, कैसे किसी एक समुदाय की तुष्टि कर सके। कैसे फ्री के नाम पर वोट खींचे जा सके?
दूसरे शब्दों में, उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वे भारत के सभी युवाओ को कैसे रोजगार उपलब्ध कराएँगे, उसके लिए क्या कठिन निर्णय करने होंगे? क्या सभी युवा-युवतियों को सरकारी नौकरी दी जा सकती है? कैसे प्रदूषण कम करेंगे और साथ ही उद्योगों का विकास करेंगे? कैसे किसानों को उनके उत्पाद का अधिक मूल्य देंगे, साथ ही उपभोक्ताओं को सस्ता अन्न उपलब्ध कराएँगे? कैसे उन कृषि उपज को प्रोत्साहन देंगे जिसमे कम पानी की खपत हो? कैसे स्थानीय एवं ग्रामीण स्तर पर स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देंगे? कैसे सड़के बनवाएंगे, रेलवे का विकास करेंगे; मेधा पटकर जैसों के विरोध के बावजूद सिंचाई की व्यवस्था करेंगे, और विदेशी धन पर पलने वाले एनजीओ से मुकाबला करेंगे जो भारत के विकास में आकाओ के इशारो पे बाधा डाल रहे हैं?
इसके साथ ही कैसे जलवायु परिवर्तन की वैश्विक संधियों के कारण भारत को आने वाले वर्षों में भूमिगत ईंधन (कोयला, डीजल-पेट्रोल, गैस) का प्रयोग अत्यधिक कम करना होगा जिसके कारण पुराने उद्यम (कोयला खदान, बिजली उत्पादन संयंत्र, पेट्रोल पंप इत्यादि) बंद होंगे और नए उद्यम खोलने होंगे? कैसे उन उद्यमों पर निर्भर जनता को नए रोजगार के अवसर एवं ट्रेनिंग उपलब्ध करायेंगे? कैसे कृत्रिम बुद्धि एवं ब्लॉकचेन पर आधारित कंप्यूटर, रोबोट, फैक्ट्री, सप्लाई चेन, बैंकिंग इत्यादि के लिए युवा-युवतियों को तैयार करेंगे? ऑनलाइन शॉपिंग एवं सेवाओं के लिए पारम्परिक व्यवसाइयों को कैसे तैयार करेंगे? कैसे अधिक से अधिक भारतीयों को आयकर के दायरे में लाया जाए?
दलित, जनजातीय और पिछड़े वर्ग के वंचित लोगो को आरक्षण का लाभ पहली बार मिले; इसके बारे में उनके क्या विचार है? कैसे सीमा पार से आने वाले आतंकवाद का मुकाबला करेंगे? कैसे नक्सलवाद से निपटेंगे? कैसे पड़ोस के फर्जी “साम्यवादी” देश के खतरे से मुकाबला करेंगे? अंत में, कैसे इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि राजनीति से वंशवाद को दूर किया जा सके? क्या उन नेताओं के पास कोई बोल्ड विचार है, जिससे वे सभी भारतीयों के विचारों को प्रभावित कर सके? ऐसी क्या बात है कि उनके विचार आज के युवाओं और युवतियों की आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा को संबोधित नहीं करते? वस्तुत: देखा जाए तो आज सभी जगह भारतीय युवाओं को राष्ट्र के विकास के बारे में, उन्नति के बारे में, सभी भारतीयों की प्रगति के बारे में वर्तमान मोदी विरोधी विपक्ष के विचार जानने की उत्सुकता है।
(प्राध्यापक विधि, सदस्य प्रशासनिक मप्र निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग भोपाल)
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